Book Title: Prakrit Sahitya Ka Itihas
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 790
________________ अलंकार ग्रन्थों में प्राकृत पद्यों की सूची ७८३ हसिअंसहत्थतालं सुक्खवडं उवगएहि पहिएहिं। पत्तप्फलसारिच्छे उड्डाणे पूसवन्दम्मि ॥ (स० के०३, १०९; गा० स०३,६३) पत्र और फल के समान शुकसमूह के उड़ जाने पर सूखे वटवृक्ष के समीप आये हुए पथिकजन हाथ से ताली बजाकर हँसने लगे। (भ्रांति अलंकार का उदाहरण) हसिएहिं उवालम्भा अञ्चुवआरेहिं रूसिअन्वाई। अंसूहि भण्डणाहिं एसो मग्गो सुमहिलाणं ॥ (स० के०५,३९१; गा० स०६, १३) हँसकर उपालंभ देना, विशेष आदर से रोष व्यक्त करना और आंसू बहा कर प्रणय-कलह करना यह सुमहिलाओं की राति है । (ललिता का उदाहरण) हिअअडियमन्नं तुअ अणरुटमहं पिमं पसायन्त । अवरद्धस्स वि ण हु दे बहुजाणय ! रूसिउं सक्कम् ॥ (काव्या०, पृ०७५, १४३, ध्वन्या०२, पृ०२०३) हे बहुज्ञ प्रियतम ! अन्दर क्रोध से जलनेवाली और ऊपर से प्रसन्नता दिखाने वाली मुझको प्रसन्न करते हुए, तुम्हारे अपराधी होते हुए भी मैं तुम्हारे ऊपर रोष करने में असमर्थ हूँ । ( अर्थशक्ति-मूल अर्थान्तरन्यास ध्वनि का उदाहरण) हिअए रोसुभिण्णं पाअप्पहरं सिरेण पत्थन्तो। ण हओदहओ मागंसिणीए अथोरं सुरुष्णम् ॥ (स० कं०३, १४२) हृदय के रोष के कारण पादप्रहार की सिर से इच्छा करते हुए प्रियतम का उस मनस्विनी ने ताड़ना नहीं की, बल्कि बह बड़े-बड़े आंसू गिराने लगी। (भाव अलङ्कार का उदाहरण) हमि अवहथिअरेहो णिरंकुसो अह विवेकरहिओ वि। सिविणे वि तुमम्मि पुणो पत्तिअभत्तिं न पुप्फुसिमि ॥ (काव्या० पृ०८२, १५२, काव्यप्रकाश ७,३२०, विषमबाणलीला) हे भगवन् ! भले ही मैं मर्यादारहित हो जाऊँ, निरङ्कश हो जाऊँ, विवेकहीन बन जाऊँ, फिर भी स्वप्न में भी मैं तुम्हारी भक्ति को विस्मृत नहीं कर सकता। (गर्मितत्व गुण का उदाहरण) हेमंते हिमरअधूसरस्स ओअसरणस्स पहिअस्स। सुमरिअजाआमुहसिजिरस्स सीअं चिअ पणटं। (शृङ्गार०५६, १६) हेमंतऋतु में हिमरज से धूसरित, चादर से रहित और अपनी प्रिया के मुख का स्मरण करके जिसे पसीना आ गया है ऐसे पथिक की सर्दी नष्ट हो गयी! होइ न गुणाणुराओ जडाण णवरं पसिद्धिसरणाणं । किर पण्डवइ ससिमणी चंदे ण पियामुहे दिट्टे॥ (काव्या०, पृ०३५३, ५४४, ध्वन्या० उ०१ पृ० ५७)

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