Book Title: Prakrit Sahitya Ka Itihas
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan
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अनुक्रमणिका
अंजना ५३१ अंक लिपि ६३, ११४
अंजनासंदरीकथा ४८९ अंग (देश)६५, १६३ (नोट), ५४८
अंजू ९८ अंग३३ (नोट),३४, ४४
अंडय १९१ अंग (आंग)५५, ६३
अतर्कथा ३६० अंगचूलिया (का) ३३ (नोट), अंतगडदसाओ (अंतःकृद्दशा)३४, ४२, १३२, १५३, १९०
६१,८८, ९५, २७२, ३५२, ५२७ अंगधारी मुनि ३१६
अंतरंगकथा ४८९ अंगना १२६
अंतरंगप्रबोध ५२४ अंगपण्णत्ति (अंगप्रज्ञप्ति) ३२५
अंतरंगसंधि ५२४ अगप्रविष्ट ३४ (नोट), ५७, १८९,
अंतरीक्ष ५५, ६३,
अंतर्वेदी ३६७, ४२७ २७१, २९२, अंगबाह्य ३३ (नोट), ५७, ११८,
अंत्याक्षरी ५३६ १८९, २०७, २७१, २९२, ३२३ ।।
___ अंधगवण्ही (अंधगवृष्णि) ८९, १२२, अंग-मगध ४३, १५८
३८७, अंगरिसि १८७
अंबष्ठ ६०, ११३, २००, अंगविजा (अंगविद्या) ६० (नोट), अ
ही अंबड (अनार्य देश)२०६
अंशिका १५८ ११३ (नोट), १२९, १३, १६६,
३७०, ५०७, ६७१ अंगविज्जासिद्धविही ३५२
अइमुत्तकुमार ९० अंगारकर्म ६७ (नोट), ८६ अइसइखित्तकंडं ३०३ (नोट) अंगारिक ६४२
अकर्मभूमि ७४ अंगादान (पुरुषेन्द्रिय) १३६ अकलंक (वंदित्तसुत्त के टीकाकार) अंगुलपदचूर्णी ३२९ अंगुलसप्ततिकाप्रकरण ३४९ अकलंक (विवेकमंजरी के टीकाकार) अंगुत्तरनिकाय ५६
५२१ अगुष्ठ २४७
अकलंक (दिगंबर आचार्य) २७१ अगोपांग २६७
(नोट), २७५ अंघिय (आ) ४७९
अकालदन्तकप्प ६८० अंचलगच्छीय (बृहस्पट्टावलि)३५५ अक्रिया ५४ अंजन ३६८, ४२३, ४३०
अक्रियावादी ६०,७४, १५४, २०२ अंजनश्री १४८
अक्खरपुडिया (लिपि)२
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