Book Title: Prakrit Sahitya Ka Itihas
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan
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१३२
प्राकृत साहित्य का इतिहास जिनप्रम (अजितशांतिस्तववृत्तिकार) जिनहंस ४५ ६५१, ६५२
जिनहर्षगणि (रयणसेहरीकहा के जिनप्रभसूरि (पासनाहलघुथव के
कर्ता) १८२ कर्ता)५७०
जिनेश्वर (मल्लिनाथचरित के कर्ता) जिनप्रभीय टीका ६५३
५२६ जिनपाल ६७९
जिनेश्वरसूरि (कहाणयकोस के कर्ता) जिनप्रभसूरि ३५ (नोट)
३६२, ३७१ (नोट), ४३१, ५३७, जिनप्रतिमा ४८६
६७४ जिनपालगणि ३४०
जिनेश्वरसूरि (गायाकोष के कर्ता) जिनपालित ८१,३५७
५८४ जिनपूजा ४५२, ५८
जिनेश्वर (कथाकोश के कर्ता ) ४३९ जिनविम्ब ४३,५२१
(नोट) जिनबिम्बप्रतिष्ठा ३५२, ४५१
जिनेश्वरसूरि (जिनचन्द्रसूरि के गुरु) जिनमवन ४८६, ४८८, जिनभद्रगणि धमाश्रमण ३४ (नोट), जिनेश्वरसरि (वंदित्तसुत्त के टीका. १६१, १७२, २२९, २३०, ३२९,
__कार) १८७ ३३४, ३४६, ३५४, ३७७, ३८१,
जीत १५३, १६१, ३०६, ३०७ ५२५ जिनरचित ८१,३५७
जीतकल्पभाष्य २२९, ३२९ जिनराजस्तव ५७२
जीयकप्प (जीतकल्प) ३३ (नोट), जिनवल्लभसूरि (संवेगरंगसाला के ३५, १३४, १६१, १९६, १९७, __संशोधक)३४०, ५१९
३०४,३२९ जिनवल मसूरि (सार्धशतक के कर्ता) जीर्ण अंतःपुर १४१ ३३४
जीवंधर ५२७ जिनवल्लभसूरि (लघु अजितसंतिथव जीवट्ठाण २७६ के कर्ता)५७० (नोट)
जीव का स्वरूप २३१ जिनवल्लभसूरि (पोसह विहिपयरण जीवनिकाय ६२ के कर्ता)३५२
जीव विचारप्रकरण ३४५ जिनवभगणि (सडसीइ के कर्ता) जीवविभक्ति ३३ (नोट), १३२ ३३६
जीवममासविवरण ५०५ जिनवल्लभगणि (पिंडविसोही के
जीवसिद्धि (वनस्पति में)३९२ कर्ता) १३१
जीवसमास २७५,२८०,३३३ जिनवल्लम (बृहत्संग्रहणी के कर्ता)
जीवस्थानसत्प्ररूपण २८० ३४६ जिनशासन का सार २२८
जीवस्थान-द्रव्य प्रमाणानुगम २८१ जिनसूरि ६५२
जीवस्थानचूलिका २८३ जिनसेन २७२, २७३, २७५, २७७. जीवानुशासन ३३९
२९१,३२१,१२६,५२७,६४४ जीवाभिगमसंग्रहणीप्रकरण ३४९

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