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सहायक ग्रन्थों की सूची
पिशल : प्राकृत भाषाओं का व्याकरण; अनुवादक, हेमचन्द्र जोशी, बिहार
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पतंजलि : महाभाष्य, भार्गवशास्त्री, निर्णयसागर, बम्बई, सन् १९५१ | पी० एल० वैद्य : प्राकृत शब्दानुशासन की भूमिका, जीवराज जैन ग्रन्थमाला, शोलापुर, १९५४ ।
ए० एन० उपाध्ये : लीलावईकहा की भूमिका, सिंधी जैन ग्रन्थमाला, बम्बई, १९४९ | 'पैशाची लैग्वेज एण्ड लिटरेचर,' एनल्स ऑर भांडारकर ओरिंटिएल इन्स्टिट्यूट जिल्द २१, १९३९-४० ।
बृहत्कथाकोश (हरिषेण ), बम्बई, १९४३ |
भरतसिंह उपाध्याय : पालि साहित्य का इतिहास, हिन्दी साहित्य सम्मेलन,
प्रयाग, वि० सं० २००८ ।
बरुआ और मित्र : प्राकृतधम्मपद, युनिवर्सिटी ऑव कलकत्ता, १९२५ । हरदेव बाहरी : प्राकृत और उसका साहित्य, राजकमल प्रकाशन दिल्ली ( प्रकाशन का समय नहीं दिया ) ।
एस० के० कन्त्रे : प्राकृत लैंग्वेजेज़ एण्ड देअर कॉन्ट्रीब्यूशन टू इण्डियन कल्चर, भारतीय विद्याभवन, बम्बई, १९४५ ।
ए० एम० घाटगे : 'शौरसेनी प्राकृत,' जरनल ऑव द युनिवर्सिटी ऑव बम्बई, मई, १९३५ | 'महाराष्ट्री लैंग्वेज एण्ड लिटरेचर, ' वही, जिल्द, ४, भाग ६ । मनमोहन घोष : कर्पूरमंजरी की भूमिका, युनिवर्सिटी ऑप कलकत्ता, १९३९ । 'महाराष्ट्री ए लेटर फ़ेज़ ऑव शौरसेनी,' जरनल ऑव डिपार्टमेण्ट ऑव लेटर्स जिल्द २३, कलकत्ता, १९३३ ।
ग्रामर ऑफ मिडिल इण्डो-आर्यन, कलकत्ता, १९५१ ।
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