Book Title: Prakrit Sahitya Ka Itihas
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 778
________________ अलंकार ग्रन्थों में प्राकृत पद्यों की सूची ७१ वाहित्ता पडिवाणं ण देइ रूसेइ एकमेक्कम्मि । असती कोण विणा पइप्पमाणे गईकच्छे ॥ (स० कं० ३, ५१, गा० स०५, १६) (जंगल की आग से) प्रदीप्यमान नदी के तट पर बिना काग के इधर-उधर भटकने वाली कुलटा बुलाई जाने पर भी प्रत्युत्तर नहीं देती, और प्रत्येक पुरुष को देख कर रोप करती है। (सूक्ष्म अलङ्कार का उदाहरण) विअडे गअणसमुद्दे दिअसे सूरेण मन्दरेण व महिए। णीइ मइरव्व संज्झा तिस्सा सग्गेण अमुअकलसो व्व ससी ॥ (स० कं०४, १९०) महान् आकाशरूपी समुद्र में मन्दर गिरि की भाँति सर्य के द्वारा दिवस के पूजित ( अथवा मथित ) होने पर, जैसे मदिरा निकलती है वैसे ही संध्या के मार्ग से अमृतकलश की भाँति चन्द्रमा उदित हो रहा है । (परिकर अलङ्कार काउदाहरण) विअलिअविओअविअणं तक्खणपब्भट्टराममरणाआसम् । जनअतणआइ णवरं लद्धं मुच्छाणिमीलिअच्छीअ सुहं॥ (स० के० ५, २६८; सेतु०११, ५८) मूर्छा के कारण जिसकी आँखें मुंद गई हैं ऐसी जानफी ने योगजनित पीड़ा को भुला कर राममरण के महाकष्ट से तत्क्षण मुक्ति पाकर सुख ही प्राप्त किया। विअसन्तरअक्वउरं मअरन्दरसुद्धमायमुहलमहुअरम् । उउणा दुमाण दिजइ हीरइ न उणाइ अप्पण चिअ कुसुमम् ॥ (काव्या० पृ०३६१, ५५०) विकसित पराग से विचित्र और मकरंद रस की सुगंध से आकृष्ट हुए गुंजन करने वाले भौरों से युक्त ऐसे पुष्प वसंतऋतु द्वारा वृक्षों को प्रदान किये जाते हैं, उनका अपहरण नहीं किया जाता । (निदर्शन अलङ्कार का उदाहरण) विक्विणइ माहमासम्मि पामरो पारडि बहल्लेण । णिधूममुरमुरे सामलीए थणए णिअच्छन्तो॥ (स. कं०५, ११; गा० स०३,३८) पोडशी नववधू के निधूम तुष-अग्नि की भाँति ऊष्मा वाले स्तनों पर दृष्टिपात करता हुआ पामर कृषक माघ महीने में अपनी चादर बेच कर बैल खरीदता है। (परिवृत्ति अलङ्कार का उदाहरण) विमलिअरसाअलेण वि विसहरवइणा अदिद्वमूलच्छेअं। अप्पत्ततुंगसिहरं तिहुअणहरणे पवड्ढिएण वि हरिणा ॥ (स० के०४, २२४; सेतु. ९,७) पाताल तक संचार करने पर भी उसके (सुवेल पर्वत के ) मूल भाग को शेषनाग ने नहीं देखा, और उसका उच्च शिखर तीनों लोकों को मापने के लिये बढ़े हुए त्रिविक्रम द्वारा भी स्पर्श नहीं किया गया। - (अतिशयोक्ति अलङ्कार का उदाहरण)

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