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६१० प्राकृत साहित्य का इतिहास उषा और अनिरुद्ध की कथा श्रीमद्भागवत से ली गई है। इस पर राजशेखर की कर्पूरमञ्जरी का प्रभाव स्पष्ट है । यहाँ विविध छन्द और अलङ्कारों का प्रयोग किया गया है।
बाण की कन्या उषा अनिरूद्ध को स्वप्न में देखती है। उसे प्रच्छन्नरूप से उषा के घर लाया जाता है और वह वहाँ रह कर उसके साथ क्रीडा करने लगता है। एक दिन नौकरों को पता लग जाता है, और वे इस बात की खबर राजा को देते हैं। राजा अनिरुद्ध को पकड़ कर जेल में डाल देता है। उपा उसके विरह में विलाप करती है । दूसरे सर्ग में, जब कृष्ण को पता लगता है कि उनके पौत्र को जेल में डाल दिया गया है तो वे बाण के साथ युद्ध करने आते हैं। बाण की सेना पराजित हो जाती है और बाण की सहायता करनेवाले शिव कृष्ण की स्तुति करने लगते हैं। तीसरे सर्ग में बाण अपनी कन्या उषा का विवाह अनिरुद्ध से कर देता है। कृष्ण द्वारका लौट जाते हैं। अन्तिम सर्ग में नगर की नारियाँ अपना काम छोड़ कर उपा और अनिरुद्ध को देखने के लिये जल्दीजल्दी आती हैं। कोई कंकण के स्थान पर अंगद पहन लेती है, कोई करधौनी के स्थान पर अपनी कटी में हार पहन लेती है, कोई प्रयाण करने के कारण अपनी शिथिल नीवी को हाथ से पकड़ कर चलती है। विविध क्रीडाओं में रत रह कर उपा और अनिरुद्ध समय यापन करते हैं।
-ofetoo