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अलंकार ग्रन्थों में प्राकृत पद्यों की सूची
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हे तुन्दरि ! जरा इधर आ, कान लगाकर अपनी निन्दा सुन । हे कृशोदरि! लोग अब तेरे मुख के सामचन्द्रनाकी उपमा देने लगे हैं।
(प्रतीप अलंकार का उदाहरण ) एकत्तो रुअइ पिया अण्णत्तो समरतूरनिग्घोसो। नेहेण रणरसेण य भडस्स दोलाइयं हिअअम् ॥
(काव्यानु० पृ० १६८, १८७, दशरू० ४ पृ० २१२) एक ओर प्रिया रुदन कर रही है, दूसरी ओर युद्ध की भेरी का घोप सुनाई दे रहा है, इस प्रकार स्नेह और युद्धरस के बीच योद्धा का हृदय डोलायमान हो रहा है । ( रति और उत्साह नामक स्थायी भावों का चित्रग)।
एक्को वि कालसारो ण देइ गन्तुं पआहिण वलन्तो। कि उण बाहाउलिअं लोअणजुअलं मिअच्छीए ।
(स०कं०५,२४४, गा० स०१,२५) दाहिनी ओर से बाईं ओर को जाता हुआ हरिण प्रवास के समय अपशकुन माना जाता है, फिर भला अश्रुपूर्ण नेत्रवाली मृगाक्षी (प्रियतमा) को देखकर तो और भी अपशकुन मानना चाहिये । ( अर्थापत्ति अलंकार का उदाहरण )
एक्कं पहरुविणं हत्थं मुहमारुएण वीअन्तो। सोवि हसन्तीए मए गहीओ बीएण कण्ठम्मि ।
(स० के० पृ० १७१; गा० स०१,८६) मेरे प्रहार से उद्विग्न, (मेरे) एक हाथ में अपने मुँह से फूंक मारते हुए अपने प्रियतम को मैंने हँसते-हँसते दूसरे हाथ से अपने कंठ से लगा लिया।
एत्तो वि ण सच्चविओ गोसे पसरत्तपल्लवारुणच्छाओ। मजणतंबेसु मओ तह मअतंबेसु लोअणेसु अमरिसो॥
(स० के०३ पृ०१२६, काव्या० पृ०३६९, ५७२) प्रभातकाल में जिसके स्नान के पश्चात् ललौहें नेत्रों में फैलते हुए पल्लवों का अरुण राग रूपी मद, तथा मद से ललौहें नेत्रों में अमर्ष (क्रोध ) आता हुआ भी दिखाई नहीं दिया। (यह अतिशयोक्ति का उदाहरण है। यहाँ नेत्रों के दोनों प्रकार के अरुण राग में अभिन्नता दिखाई है)।
एदहमित्तत्थणिया एहमित्तेहिं अच्छिवत्तेहिं । एयावत्थं पत्ता एत्तियमित्तेहिं दियहेहिं ॥
(काव्या० पृ० ६५, ५२, स० कं० २, ८२, काव्य०२, ११) इतने थोड़े से ही दिनों में यह सुन्दरी इतने बड़े-बड़े स्तनों वाली और इतनी बड़ी आँखों वाली हो गई ! ( अभिनय अलंकार का उदाहरण)
एमेअ अकअउण्णा अप्पत्तमणोरहा विवन्जिस्सं।
जणवाओ विण जाओ तेण समं हलिअउत्तेण ॥ (स०के०५, १४१) उस हलवाहे के साथ मेरी बदनामी भी न हुई, इस प्रकार मैं अभागी अपना मनोरथ पूरा न होने से विपद में पड़ गई हूँ।