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अलंकार ग्रन्थों में प्राकृत पद्यों की सूची ७२७ खणपाहुणिआ देअर ! जाआए सुहम किंपि दे भणिआ। रूअइ पडोहरवलहीघरम्मि अणुणिजउ बराई ।।
__ (काव्य० प्र०४, १११, ध्वन्या०३ पृ० ५५८; साहित्य०४) हे सुन्दर देवर ! जाओ उस विचारी को मना लो। वह यहाँ जरा सी देर के लिये पाहुनी बनकर आई थी, किन्तु तुम्हारी बहू के कुछ कह देने पर घर के पिछवाडे छज्जे पर बैठी हुई वह रो रही है। (ध्वनिसांकर्य का उदाहरण)
खणमेत्तं पि ण फिट्टइ अणुदिअहं दिण्णगरुअसन्तावा । पच्छण्णपावसंकव्व सामली मज्झ हिअआहि ॥
(स० के०५, १४०, गा० स०२,८३) प्रतिदिन अत्यधिक सन्ताप देनेवाली श्यामा प्रच्छन्न पापशंका की भाँति क्षण भर के लिये भी मेरे हृदय से दूर नहीं होती।
खलववहारा दीसंति दारुणा जहवि तहवि धीराणम् । हिअवअअस्स बहुमआ ण हु ववसाआ विमुझंति ॥
(काव्य०४,७४) यद्यपि दुष्ट लोगों के व्यवहार बहुत दुखदायी होते हैं, फिर भी धीर पुरुषों के कायें जो उनके हृदयरूपी मित्र द्वारा बहुत सम्मान से देखे जाते हैं, कभी नहीं रुकते । ( अत्यन्त तिरस्कृत वाच्य नामक ध्वनिभेद का उदाहरण)
खाहि विसं पिअ मुत्तं णिजसु मारीअ पडउ दे वज्जम् । दन्तक्खण्डिअथणआ खिविऊण सुझं सवइ माआ ॥
(स० के० १, ५८) (स्तनपान के समय ) अपने शिशु के दाँतों से अपने स्तन काटे जाने पर 'तू जहर खा ले, मूत पी ले, तुझे मारी ले जाए, तेरे ऊपर पहाड़ गिर पड़े'कहती हुई माँ शिशु को एक ओर पटक कर शाप दे रही है।
(ऋरार्थ का उदाहरण) खिण्णस्स ठवेइ उरे पइणो गिम्हावरण्हरमिअस्स। ओलं गलन्तउप्पं ण्हाणसुअन्धं चिउरभारम् ॥
(स०के०५,३७९, गा०सा०३,९९) कोई नायिका ग्रीष्मऋतु की दुपहर में रमण करने के पश्चात् थके हुए पति के वक्षस्थल पर खान से सुगंधित, गीले और फूल झड़ते हुए अपने केशपाश फैला रही है।
(संपूर्ण प्रगल्भा का उदाहरण) गअणं च मत्तमेहं धारालुलिअज्जुणाई अ वणाई। निरहंकारमिअंका हरन्ति नीलाओ वि णिसाओ।
(ध्वन्या० उ०२ पृष्ठ ९२) मतवाले मेघों वाला आकाश, वृष्टिधारा के कारण चंचल अर्जुन वृक्षों वाले वन, तथा निस्तेज चन्द्रमा वाली नीली रातें (चित को) लुभा रही है।
(तिरस्कृत वाच्यध्वनि का वाक्यगत उदाहरण )