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अलंकार ग्रन्थों में प्राकृत पद्यों की सूची
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निर्वाह न करने वाले को मात्र इतना ही कहना है कि और भी बहुत से योद्धा बज्रधारा के प्रवाह में नष्ट हो गये हैं ।
किं तस्स पावरणं किमग्गिणा किं व गब्भधरएण । जस्स उरम्मि णिसम्मह उम्हाअंतत्थणी जाओ ॥
( श्रृंगार ५६, १७ )
गर्मं चादर या अग्नि की उसे क्या जरूरत है, गर्भभवन में बैठने की भी उसे आवश्यकता नहीं जिसके हृदय में ऊष्मस्तनवाली नायिका विराजमान है । किं धरणीए मिभको आआसे महिहरो जले जलणो । मज्झहम्मि पओसो दाविज्जर देहि आणत्तिम् ॥ ( दशरूपक १ पृ० ५१; रत्नावलि ४, ८ ) आज्ञा दो कि मैं पृथ्वी पर चन्द्रमा, आकाश में पर्वत, जल में अग्नि और मध्याह्न में संध्या लाकर दिखा दूँ । ( भैरवानंद की उक्ति ) ।
किं भणिओसि ण बालअ ! गामणिधूभाइ गुरुअणसमक्खम् । अणिमिसवं कवलन्तअआणणण अणद्ध दिट्ठेहिं ||
(स० कं०५, २४७; गा० स०४, ७० > हे नादान ! गांव के पटेल की पुत्री ने निमेषरहित मुँह को जरा घुमाकर, कटाक्षयुक्त नयनों से गुरुजनों के सामने क्या नहीं कह दिया ?
कुत्तो लंभइ पन्थि ! सत्थरअं एत्थ गामणिघरम्मि । अपहरे पेक्खिऊण जइ वससि ता वससु ॥
सब पत्नियों का मान-स्खलन समान होने पर हैं। हृदय से प्रकट होने वाले सार तथा प्रेम के प्रकट होता है ।
(स० कं० १,१८१ )
हे पथिक ! यहाँ गाँव के पटेल के घर में तू ( सोने के लिये ) बिस्तरा कहाँ पायेगा ? हाँ यदि, उन्नत स्तनों को देख कर यहाँ ठहरना चाहता है तो ठहर जा । ( संदिग्ध वाक्य गुण का उदाहरण ) कुलबालिआए पेच्छह जोव्वणलायन्नविब्भमविलासा । पवसंति व पवसिए एन्ति व्व पिए घरमहंते ॥
( काव्या० पृ० ४१३, ६९२; दशरू० २ पृ० ९६ ) कुलीन महिलाओं के यौवन, लावण्य और शृङ्गार की चेष्टाओं को देखो जो प्रिय के प्रवास पर चले जाने पर चली जाती हैं और उसके लौट आने पर लौट आती हैं । (स्वीया नायिका का उदाहरण )
कुविआ अ सहामा समेवि बहुआण णवर माणकचलणे । पाभडिअहिअअसारो पेम्मासंघसरिसो पअट्टइ मण्णू ॥
(स० कं०५, २६३ )
केवल सत्यभामा ही कोप करती आश्वास की भाँति उसका कोप