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अलंकार ग्रन्थों में प्राकृत पद्यों की सूची ७४५ विशेष रूप से अपनी सौतों के हृदय को दुखी करने वाली अपने प्रिय की लाड़ली उस (नायिका ) ने सौभाग्य-गुणों की अग्रभूमि में स्नेहयुक्त स्थान . बनाया है।
तुज्क्ष ण आणे हिअ मम उण मअणो दिआअ रत्तिं अ। णिक्किव! तवेइ वलिअं जुह जुत्तमणोरहाई अंगाई॥
(स० कं० २, २; अ० शाकुन्तल ३, १९) मैं तेरे हृदय को नहीं जानती लेकिन हे निदेय ! जिसके मनोरथ तुम पर केन्द्रित हैं ऐसी मुझ जैसी के अंगों को दिन और रात अतिशय रूप से काम सताता है । (शुद्ध प्राकृत का उदाहरण)
तुह वल्लहस्स गोसम्मि आसि अहरो, मिलाणकमलदलं। इय नववहुआ सोऊण कुणइ वयणं महीसमुहं ॥
(काम्या०पृ०८०,७६; काव्यप्रकाश ४,८३) आज प्रभात में तुम्हारे प्रियतम का अधरोष्ठ किसी मसले हुए कमलपत्र की भाँति दिखाई दे रहा था, यह सुनते ही नववधू का मुँह जमीन में गड़ गया।
(रूपक का उदाहरण) तुह विरहजागरओ सिविणे वि ण देइ दसणसुहाई। चाहेण जहालोअणविणोअणं पि से विहअम् ॥
(स० के०५,३३८; गा० स०५,८७) तुम्हारे विरह के जागृत रहने से स्वप्न में भी तुम्हारे दर्शन का सुख उसे प्राप्त नहीं होता तथा आँखों के अश्रुओं से पूर्ण होने से तुम्हें देखने का आनंद नहीं मिलता, यह उस बेचारी का बड़ा दुर्भाग्य है !
तेण इर णवलआए दिपणो पहरो इमीअ थणवढे । गामतरुणीहिं अज वि दिअहं परिवालिआ भमइ ॥
(स० के० ५, २२८) उसने उस नायिका के स्तनों पर नवलता से प्रहार किया जिससे वह अभी भी गाँव की तणियों द्वारा रक्षित इधर-उधर घूम रही है।
ते विरला सप्पुरिसा जे अभणन्ता घडेन्ति कज्जलावे । थोअच्चिअ ते वि दुमा जे अमुणिअकुसुमणिग्गमा देन्ति फलं ।
(स० के० ४, ६६२; सेतु० ३,९) जो बिना कुछ कहे ही काम बना देते हैं ऐसे सत्पुरुष विरले है। उदाहरण के लिये, ऐसे वृक्ष थोड़े ही होते हैं जो फूलों के बिना ही फल देते हैं।
(अर्थान्तरन्यास अलङ्कार का उदाहरण) तो कुम्भअण्णपडिवअणदण्डपडिघट्टिआमरिसघोरविसो। गलिअंसुअणिमोओ जाओ भीसणनरो दसाणणभुअओ॥
(स० कं०४, ३८) तत्पश्चात् कुंभकर्ण के प्रत्युत्तर रूपी दंड से जिसका क्रोध रूपी उग्र विष