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प्राकृत साहित्य का इतिहास पइपुरओ चिअ णिजइ विंछुअदटेत्ति जारवेजघरं । सहिआसपण करधरिअजुअलअंदोलिरी मुद्धा ॥
(शृंगार० ४०, १९५) __बिच्छू से काटी हुई, भुजाओं को हाथ से पकड़े हुए, कंपनशीला मुग्धा नायिका अपनी सखी के सहारे पति के सामने ही जार-वैद्य के घर ले जाई जा रही है !
पउरजुआणो गामो महुमासो जोवणं पई ठेरो। जुण्णसुरा साहीणा असई मा होउ किं मरउ ।
(स० के०४, १५४; गा० स०२,९७) इस गाँव में बहुत से जवान पुरुष हैं, वसन्त की बहार है, जवानी अपनी छटा दिखा रही है, पति खूसट है, पुरानी सुरा पास में है, फिर भला ऐसी हालत में कोई कुलटा न बने तो क्या प्राण त्याद दे ?
(आक्षेप, तुल्ययोगिता अलङ्कार का उदाहरण) पच्चूसागअ ! रंजियदेह ! पिआलो! लोअणाणन्द ! अण्णत्त खविअसव्वरि ! णहभूसण! दिणवइ ! णमो दे॥
(स० के० ५,३९८; गा० स०७,५३) प्रत्यूषकाल में दूसरे द्वीप से ( दूसरे पक्ष में सौत के घर से ) आगत, अरुण देह . से युक्त (दूसरे पक्ष में सौत के अलक्त आदि से रंजित), प्रिय आलोक वाले, लोचनों को आनन्ददायी, अन्यत्र रात्रि बिताने वाले (अन्य स्त्रियों के साथ रात बिताने वाले ) और आकाश के भूपण ( नखक्षत आदि आभूषण से युक्त ) है सूर्य ! तुझे नमस्कार हो। (खंडिता नायिका का उदाहरण)
पज्जत्तंमि वि सुरए विअलिअबंध अ संजमंतीए। विन्भमहसिएहिं कओ पुणो वि मअणाउरो दइओ॥
- (शृंगार० ५४, ६) सुरत के समाप्त होने पर, अपनें खुले हुए नाड़े के बंधन को ठीक करती हुई नायिका ने अपने विलासपूर्ण हास्य द्वारा अपने दयिता को पुनः काम से व्याकुल कर दिया।
पटुंसुउत्तरिजेण पामरो पामरीए परिपुसइ।
अइगुरुअकूरकुम्भीभरेण सेउल्लिअं वअणम् ॥ (स० कं १,७०) बहुत भारी चावलों की कलसी के भार के कारण पसीने से गीले हुए. पामरी के मुँह को पामर उसके रेशमी उत्तरीय से पोंछ रहा है।
(औचित्यविरुद्ध का उदाहरण ) पडिआ अ हत्थसिढिलिअणिरोहपण्डुरसमूससन्तकवोला । पेल्लिअवामपओहरविसमुण्णअदाहिणत्थणी जणअसुआ ॥
(स०के०४, १७२, सेतु०११, ५४) हाथ के शिथिल होकर खिसक जाने से जिसके पांडुर कपोल (हस्तपीडन के त्याग के कारण ) उच्छ्वास ले रहे हैं, तथा वाम पयोधर के पीड़ित होने से
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