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अलंकार ग्रन्थों में प्राकृत पद्यों की सूची ७५३ धीरं हरइ विसाओ विण जोवणमदो अणंगो लजं । एकंतगहिअवक्खो कि सेसउ जंठवेइ वअपरिणामो॥
(स० कं० ४, १७४; सेतु० ४, २३) विषाद धैर्य का, यौवनमद विनय का और कामदेव लज्जा का अपहरण करता है, फिर एकान्तपक्ष निर्णय बुद्धि वाले बुढ़ापे के पास बचता ही क्या है जिसे वह स्थापित करे ? ( अर्थात् बुढ़ापा सर्वहारी है ) । (परिकर अलङ्कार का उदाहरण)
धुअमेहमहुअराओ घणसमआअड्ढिओणअविमुक्काओ। णहपाअवसाहाओ णिअअट्ठाणं व पडिगआओ दिसाओ॥
(स० कं० ४, ४७, सेतु० बं० १, १९) इधर-उधर उड़ने वाले मेघरूपी भौरों से युक्त (नायिका के पक्ष में बुद्धि नष्ट करने वाले मधु को हाथ में धारण किये हुए) वर्षाऋतु में धन आवरण के कारण आकृष्ट, अवनत और फिर त्यक्त ( नायिका के पक्ष में अत्यंत मदपूर्वक नायक के द्वारा आकृष्ट, वशीकृत और उपभोग के पश्चात् त्यक्त) ऐसे आकाशरूपी वृक्षों की शाखारूपी दिशायें (नायिका के पक्ष में नखक्षत के प्रसाधन से युक्त) अपनेअपने स्थान पर चली गई (नायिकाओं के पक्ष में अभिसरण के पश्चात् प्रातःकाल के समय ) । (रूपक अलङ्कार का उदाहरण)
धूमाइ धूमकलुसे जलइ जलंता रहन्तजीआबन्धे । पडिरअपडिउण्णदिसे रसइ रसन्तसिहरे धम्मि णहअलं ॥
(स० के० २, २२७; सेतुबंध ५, १९). राम के धनुष से उठे हुए धुएँ की कालिमा से आकाश धुएँ से भर गया, अग्निबाण को चढ़ाते समय प्रत्यंचा की ज्वाला से आकाश प्रज्वलित हो गया और कोटि की टंकार से प्रतिध्वनित होकर दिशाओं को गुंजित करने लगा।
(अनुप्रास का उदाहरण) पअडिअसणेहसंभावविन्भमंतिअ जह तुमं दिट्ठो। संवरणवावडाए अण्णो वि जणो तह ञ्चेव ॥
(स० के० ३, १२८, गा० स०२, ९९) अपने लेह का सद्भाव प्रकट करके जैसे उसने तुम्हारी ओर दृष्टिपात किया, वैसे ही अपने प्रेम-संबंध को गोपन करने की दृष्टि से उसने अन्य जन को देखा।
पअपीडिअमहिसासुरदेहेहि, भुअणभअलुआब(?)ससिलेहिं । सुरसुहदेत्तवलिअधवलच्छिहिं, जअइ सहासं वअणु महलच्छीए ॥
(स० कं० २,३८८) अपने चरणों द्वारा जिसने महिषासुर को मर्दन कर रक्खा है, चन्द्रमा की किरणों से जिसने संसार में भय उत्पन्न किया है, तथा देवताओं को सुखकर गोलाकार धवल नेत्रों वाला ऐसा महालक्ष्मी का हास्ययुक्त मुख विजयी हो।
(आक्षिप्तिका का उदाहरण) ४८ प्रा० सा०