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प्राकृत साहित्य का इतिहास विवाह के लिये वर के द्वारा शीघ्रता करने पर भी तब तक समय यापन करो जब तक कि कुमारी के अंग पाण्डु नखक्षतों से युक्त न हो जायें ।
(विवाह के समय परिहास का उदाहरण) ताणं गुणग्गहणाणं ताणुकंठाणं तस्स पेम्मस्स । ताणं भणिआणं सुन्दर ! एरिसिअंजाअमवसाणम् ॥
(काव्य० प्र०४, १०२) हे सुन्दर ! क्या उन गुणों के वर्णन का, उन उत्कंठाओं का, उस प्रेम का और तुम्हारी उन प्रेमपगी बातों का यही अन्त होना था ?
(वचन की रसव्यंजकता का उदाहरण) ताला जायन्ति गुणा जाला ते सहिअएहि धिप्पंति । रविकिरणाणुग्गहिआई हुँति कमलाई कमलाई ॥ (अलङ्कार० पृ० २३; काश्या० पृ० २०९, २३५, विषमबाणलीला;
. काव्य०प्र०७,३१५) गुण उस समय उत्पन्न होते हैं जब वे सहृदय पुरुषों द्वारा ग्रहण किये जाते हैं। सूर्य की किरणों से अनुगृहीत विकसित कमल ही कमल कहे जाते हैं।
(लाटानुप्रास का उदाहरण) ताव चिअ रइसमए महिलाणं विन्भमा बिराअन्ति । जाव ण कुवलयदलसच्छहाई मउलेन्ति णअणाई.॥
(सं० कं०५, १६८७ दशरूपक २, पृ० १००% गा०स० १,५) रति के समय स्त्रियों की श्रृंगार-चेष्टाएँ तभी तक शोभित होती हैं जब तक कि कमलों के समान उनके नयन मुकुलित नहीं हो जाते।
(रसाश्रित भाव का उदाहरण) तावमवणेइ ण तहा चन्दनपंको वि कामिमिहुणाणम् । जइ दूसहे वि गिम्हे अण्णोण्णालिंगणसुहेल्ली ॥
(स० के० ५, २१३; गा० स० ३, ८८) असह्य ग्रीष्मकाल में भी कामीजनों का ताप, जैसा परस्पर आलिंगन-सुख की क्रीड़ा से शान्त होता है, वैसा चन्दन के लेप से भी नहीं होता।
(सङ्कर अलङ्कार का उदाहरण) तीए दंसणसुहए पणअक्खलणजणिओ महम्मि मणहरे।। रोसो वि हरइ हिअअंमअअंको ब्व मिअलंछणम्मि णिसण्णो ॥
(स०६०५, ४८५) उसके दर्शनीय सुंदर मुख पर प्रणय के स्खलन के कारण जो रोप दिखाई देता है वह भी चन्द्रमा में बैठे हुए मृग के चिह की भाँति मनोहर जान पड़ता है।
(सङ्कर अलङ्कार का उदाहरण) तीए सविसेसदूमिअसवत्तिहिअआई णिग्वलणन्तसिणेहं। पिअगलइआइ णिमि सोहम्गगुणाण अग्गभूमीअ पनं ॥
(स० कं०५, ३५०)