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प्राकृत साहित्य का इतिहास
एतो हु मंतभेओ दूनीओ होश कामनेमुक्का | महिला चरहस्सा रहस्सकाने न संठाइ || आभरणमवेलायां नीति अवि य वेधति चिंता । होन मंतभेओ गमणविधाओ अनिव्वाणी ॥ संघदागणिके वसुदेवहिण्डी में भी अत्यसत्य की एक गाथा का उल्लेख है
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विसेसेणमायाए सत्थेण यतन्त्र अप्पणी चित्रढमाणो सत्तु त्ति । ( अपने बढ़ते हुए शत्रु का विशेष माया से या शस्त्र से संहार करना चाहिये)
इसी प्रकार ओधनियुक्ति ( गाथा ४१८ ) की द्रोणसूरिकृत वृत्ति (पृष्ठ १५२ ) में चाणक्य का निम्नलिखत अवतरण दिया गया है
जह काइयं न वोसिरइ ततो अदोसो |
( यदि मल-मूल का त्याग नहीं करना है तो दोष नहीं है । राजनीति
इस ग्रंथ के रचयिता का नाम देवीदास है । इसकी हस्तलिखित प्रति डेक्कन कालेज भंडार, पूना में है । '
निमित्तशास्त्र
जैन ग्रन्थों में निमित्तशास्त्र का बड़ा महत्त्व बताया है । विद्या, मंत्र और चूर्ण आदि के साथ निमित्त का उल्लेख आता है । मंखलिगोशाल निमित्तशास्त्र का महापंडित था | आर्यकालक के शिष्य इस शास्त्र का अध्ययन करने के लिये आजीविक मत के अनुयायियों के समीप जाया करते थे । स्वयं आर्यकालक निमित्तशास्त्र के बेत्ता थे । आचार्य भद्रबाहु को भी निमित्नवेत्ता
१. देखिये जैन ग्रन्थावलि, पृष्ठ ३३९ ।
२. पंचकल्पचूर्णी; मुनि कल्याणविजय जी ने श्रमण भगवान् महावीर ( पृ० २६० ) में इस उद्धरण का उसलेख किया है ।