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अलंकार अन्थों में प्राकृत पद्यों की सूची ७०७ हे नादान ! मैं गुस्सा नहीं हूँ। ( नायक उत्तर देता है ) तो फिर मेरा तू आलिंगन कर, मैं व्यर्थ ही तुझे मना रहा हूँ; तेरे क्रोध से उत्पन्न मान से मुझे प्रयोजन नहीं।
अण्णे वि हु होन्ति छणा ण उणो दीआलिआसरिच्छा दे। जत्थ जहिच्छं गम्मइ पिअवसही दीवअमिसेण ॥
(स० कं ५, ३१५) उत्सद बहुत से हैं लेकिन दिवाली के समान कोई उत्सव नहीं । इस अवसर पर इच्छानुसार कहीं भी जा सकते हैं और दीपक जलाने के बहाने अपने प्रिय को वसति में प्रवेश कर सकते हैं।
अण्णं लडहत्तणयं अण्ण चिय कावि वत्तणच्छाया। सामा सामण्णपयावइस्स रेह च्चिय न होइ॥
(काव्यानु० पृ० ३६८, ५६९; का०प्र० २०, ४५०) इल नवयौवना की सुकुमारता कुछ और है और लावण्य कुछ और किसा सामान्य प्रजापति की रचना यह कदापि नहीं हो सकती। ( अतिशयोक्ति का उदाहरण)
अतहटिए वि तहसहिए ब्व हिअअम्मि जा गिवेसेइ । अत्थविसेसे सा जअइ विकडकइगोअरा वाणी ॥
(ध्वन्या० उ०४, पृ०५९८) अर्थ विशेष में अविद्यमान अर्थ को जो विद्यमान की भाँति हृदय में बैठा देती है, ऐसी कवियों की उत्कृष्ट वाणी की विजय हो।।
अत्तन्तहरमणिजं अम्हं गामस्स मंडणीहअम् । लुअतिलवाडिसरिच्छं सिसिरेण कसं मिसिणिसंडम् ॥
(स० के०२, ७७) हमारे गाँव की एकमात्र शोभा अत्यन्त रमणीय कमलिनी के वन को शिशिर ऋतु ने काटे हुए तिल के खेत के समान बना दिया !
अत्ता एस्थ तु मजइ एत्थ अहं दियसयं पुलोएसु ।
मा पहिय रत्तिअंधय ! सेजाए महं नु मजिहसि ॥ (काव्यानु० पृ. ५३, १४, साहित्य, पृ० १७; काव्य० प्र०५ १३६; गा०स०७,६७)
हे रतौंधी वाले पथिक ! तू दिन में ही देख ले कि मेरी सास यहाँ सोती है और मैं वहाँ, कहीं ऐसा न हो कि तू मेरी खाट पर गिर पड़े। ( अभिनय और नियम अलंकार का उदाहरण)
अत्थक्कागअहिअए बहुआ दइअम्मि गुरुपुरओ।
जरड विअलंताणं हरिसविसहाण बलआणम (म००५.२५१) (प्रवास पर गये हुए ) प्रियतम के अकस्मार लौट आने पर हर्ष से स्वलित हुए कंकणों वालो बधू गुरुजनों को सामने देखकर झुर रही है।