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उसाणिरुद्ध
६०९. तीसरे सर्ग में बंदिजन प्रातःकाल उपस्थित होकर सोते. हुए कृष्ण और बलराम को उठाते हैं। वे प्रातःकाल उठकर नगरी के द्वार पर पहुँचते हैं। चाणूर और मुष्टिक नामक मल्लों से उनका युद्ध होता है।
कड्ढंता कर-जुअलेण जाणु-जंघा । संघट्ट-क्खुडिअ-विलित्त-रत्त-गत्ता ॥ उद्दामब्भमण-धुणंत-भूमि-अक्का ।
विकति विविहमिमा समारहति ॥ -(ये युद्ध करनेवाले ) दोनों हाथों से (प्रतिमल्ल के) जानु और जवाओं को खींचते हैं, संघर्ष के कारण युद्ध में उनके शरीर टूट गये हैं और रक्त से लिप्त हो गये हैं, और जिनके उद्दाम भ्रमण से भूमिचक्र काँप उठा है, इस प्रकार वे विविध प्रकार का विक्रम आरंभ कर रहे हैं। ___ कंस कृष्ण और बलराम को जेल में डाल देना चाहता है, लेकिन वह उनके हाथ से मारा जाता है । इस पर देव जय जयकार करते हैं और स्वर्ग से पुष्पों की वर्षा होती है। ___ अन्तिम सर्ग में, कंस के मरने से लोगों के मन को आनंद होता है, कुल की बालिकायें अब स्वतन्त्रता से विचरण कर सकती हैं और युवकजन यथेच्छरूप से क्रीडा कर सकते हैं। उग्रसेन राजा के पद पर आसीन होता है और कृष्ण अपने माता-पिता को कारागार से मुक्त करते हैं। इस प्रसङ्ग पर कृष्ण की बाललीलाओं का उल्लेख किया गया है । प्राकृत के दुस्तर समुद्र को पार करने के लिये अपने काव्य को कवि ने समुद्र का तट बताया है।
उसाणिरुद्ध उसाणिरुद्ध के कर्ता भी रामपाणिवाद हैं, कंसवहो की भाँति यह भी एक खण्डकाव्य है जो चार सर्गों में विभक्त है।'
१. डाक्टर कुनहन राजा द्वारा सम्पादित, अडियार लाइब्रेरी, मद्रास से सन् १९४३ में प्रकाशित ।
३९ प्रा० सा०