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मुद्राराक्षस
६२५ -निर्दय चाणक्य के द्वारा किसी निर्दोष पुरुष को बुलाये जाने पर भी उसके मन में शङ्का उत्पन्न हो जाती है, फिर अपराधी पुरुष की तो बात ही क्या ?
क्षपणक मागधी में बातचीत करता हैशाशणमलिहन्ताणं पडिवय्यध मोहवाधिवेय्याणं । जे पढममेत्तकडुरं पश्चापश्चं उवदिशन्ति ।। (अङ्क ४)
-क्या तुम मोहरूपी व्याधि के वैद्य अर्हन्तों के शासन को प्राप्त करते हो जो प्रारम्भ में मूहुर्त मात्र के लिये कटु किन्तु बाद में पथ्य का काम करनेवाली औषधि का उपदेश देते हैं ?
वज्रलोमा की मागधी में उक्ति देखियेयइ महध लकिर्दु शे पाणे विहवे कुलं कलन्तं च । ता पलिहलध विशं विअ लाआवश्चं पअत्तेण ॥ ( अङ्क ७)
-यदि अपने प्राण, विभव, कुल और कलत्र की रक्षा करना चाहते हो तो विप की भाँति राजा के लिये अपथ्य (अवांछनीय) पदार्थ का प्रयत्नपूर्वक परित्याग करो।
वेणीसंहार ___ भट्टनारायण ( ईसवी सन् की आठवीं शताब्दी के पूर्व ) के वेणीसंहार' में शौरसेनी की ही प्रधानता है। तीसरे अंक के आरंभ में राक्षस और उसकी पत्नी मागधी में बातचीत करते हैं।
ललितविग्रहराज सोमदेव के ललितविग्रहराज नाटक में महाराष्ट्री, शौरसेनी और मागधी का प्रयोग हुआ है।
१. आर० आर० देशपांडे द्वारा सम्पादित, दादर बुक डिपो, बम्बई द्वारा प्रकाशित ।
२. पिशल का प्राकृत भापाओं का व्याकरण, पृष्ठ १६। यह नाटक कीलहान द्वारा एण्टीरी २०, २२१ पृष्ठ और उसके बाद के पृष्ठों में छपा है।
४० प्रा० सा०