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महावीरचरिय देकर कोलाहल मचा रहे हैं । मालूम होता है ब्रह्मा ने यमराज का क्रीड़ास्थल ही निर्माण किया है। ___ इसी प्रसंग में महाकाल नामके योगाचार्य का उल्लेख है। तीनों लोकों को विजय करनेवाले मन्त्र की साधन-विधि का प्रतिपादन करते हुए उसने कहा कि १०८ प्रधान क्षत्रियों का वध करके अग्नि का तर्पण करना चाहिये, दिशाओं के देवताओं को बलि प्रदान करना चाहिये और निरन्तर मन्त्र का जप करते रहना चाहिये । तत्पश्चात् कलिंग आदि देशों में जाकर क्षत्रियों का वध किया गया।
युद्धवर्णन पर दृष्टिपात कीजियेखणु निठुरमुहिहिं उहियंति, खणु पच्छिमभागमणुव्वयंति | खणु जणगजणणि गालीउ देंति, खणु नियसोंडीरम्मि कित्तयंति ॥
-(कभी योद्धा गण ) क्षणभर मैं अपने निष्ठुर मुक्के दिखाते हैं, क्षणभर में पीछे की ओर घूमकर आ जाते हैं, कभी माँ-बाप की गालियाँ देने लगते हैं, और कभी अपनी शूरवीरता का बखान करने लगते हैं।
आगे चलकर कालमेघ नाम के महामल्ल का वर्णन है। इसे मल्लयुद्ध में कोई नहीं जीत सकता था। नगर के राजा ने इसे विजयपताका समर्पित कर सम्मानित किया था। नरविक्रमकुमार ने उसे मल्लयुद्ध में पराजित कर शीलमती के साथ विवाह किया। आगे चलकर नरविक्रमकुमार शीलमती और अपने पुत्रों को लेकर नगर से बाहर चला जाता है और किसी माली के यहाँ पुष्पमालायें बेचकर अपनी आजीविका चलाता है। देहिल नाम का एक व्यापारी छलपूर्वक शीलमती को अपने जहाज में बैठाकर उसे भगा ले जाता है । अन्त में नरविक्रमकुमार का उसके पुत्रों और पली से मिलन हो जाता है। नरविक्रमकुमार जैन दीक्षा धारण कर मोक्ष प्राप्त करते हैं।।
नन्दन का जीव देवानन्दा ब्राह्मणी के गर्भ में अवतरित होता है। उसे क्षत्रियकुंडग्राम की त्रिशला क्षत्रियाणी के गर्भ में