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५५४ प्राकृत साहित्य का इतिहास परिवर्तित कर दिया जाता है। बालक का नाम वर्धमान रक्खा जाता है । जन्म आदि उत्सव बड़ी धूम-धाम से मनाये जाते हैं। पराक्रमशील होने के कारण महावीर नाम से वे प्रख्यात हो जाते हैं । बड़े होने पर महावीर पाठशाला में अध्ययन करने जाते हैं । बसन्तपुर नगर के राजा समरवीर की कन्या यशोदा से उनका विवाह हो जाता है। विवाहोत्सव बड़ी धूम से मनाया जाता है। महावीर के प्रियदर्शना नाम की एक कन्या पैदा होती है। २८ वें वर्ष में उनके माता-पिता का देहान्त हो जाता है। उनके बड़े भाई नन्दिवर्धन का राज्याभिषेक होता है। अपने भाई की अनुमतिपूर्वक महावीर दीक्षा ग्रहण करते हैं। निष्क्रमणमहोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है।
पाँचवें प्रस्ताव में शूलपाणि और चण्डकौशिक के प्रबोध का वृत्तान्त है। महावीर ने क्षत्रियकुंडग्राम के बाहर ज्ञातृखण्ड नामक उद्यान में श्रमण-दीक्षा ग्रहण की और कुम्मारगाम पहुँचकर वे ध्यानावस्थित हो गये । सोम ब्राह्मण को उन्होंने अपना देवदूष्य वस्त्र दे दिया । कुम्मारगाम में गोप ने उपसर्ग किया। भ्रमण करते हुए वे वर्धमानग्राम में पहुँचे । वर्धमान का दूसरा नाम अस्थियाम था । यहाँ शूलपाणि यक्ष ने उपसर्ग किया ! कनकखल आश्रम में पहुँचकर उन्होंने चंडकौशिक सर्प को प्रतिबोधित किया। यहाँ गोभद्र नामक एक दरिद्र ब्राह्मण की कथा दी है। धन प्राप्ति के लिये गोभद्र की स्त्री ने उसे वाराणसी जाने के लिए अनुरोध किया। उस समय बनारस में बहुत दर-दर से अनेक राजा-महाराजा और श्रेष्ठी आकर रहते थे। कोई परलोक सुधारने की इच्छा से, कोई यश-कीर्ति की कामना से, कोई पाप-शमन की इच्छा से और कोई पितरों के तर्पण की भावना से यहाँ आता था । लोग यहाँ महा होम करते, पिंडदान देते और सुवर्णदान द्वारा ब्राह्मणों को सम्मानित करते थे। गोभद्र बनारस के लिये रवाना हो गया। मार्ग में उसे एक सिद्धपुरुष मिला | दोनों साथ-साथ चले। सिद्धपुरुष ने अपने