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प्राकृत साहित्य का इतिहास विजययात्रा में आये हुए अनेक तालाब, नदी, पर्वत और वक्ष आदि का वर्णन किया गया है । ग्राम्य-जीवन का चित्र देखिये
टिविडिक्किअ डिंभाणं णवरंगयगव्वगरुयमहिलाण । णिकम्पपामराणं भदं गामूसव-दिणाण ॥
-वे ग्रामोत्सव के दिन कितने सुन्दर हैं जब कि बालकों को प्रसाधित किया जाता है, नये रंगे हुए वस्त्रों को धारण कर स्त्रियाँ गर्व करती हैं और गाँव के लोग निश्चेष्ट खड़े रह कर खेल आदि देखते हैं। आम्रवृक्षों की शोभा देखिये
इह हि हलिहाहयदविडसामलीगंडमंडलानीलं ।
फलमसलपरिणामावलम्बि अहिहरंइ चूयाणं॥ -हलदी से रंगे हुए द्रविड देश की सुंदरियों के कपोलमण्डल के समान, आधा पका हुआ वृक्ष पर लटकता हुआ आम का फल कितना सुन्दर लगता है ! गाँवों का चित्रण देखियेफललम्भमुइयडिंभा सुदारुघरसंणिवेसरमणिज्जा । एए हरंति हिययं अजणाइण्णा वणग्गामा ।।
-जहाँ फलों को पाकर बालक मुदित रहते हैं, लकड़ी के बने हुए घरों के कारण जो रमणीक जान पड़ते हैं और जहाँ बहुत लोग नहीं रहते, ऐसे वन-ग्राम कितने मनमोहक हैं।
यशोवर्मा विजययात्रा के पश्चात् कन्नौज लौट आता है। उसके सहायक राजा अपने-अपने घर चले जाते हैं, और सैनिक अपनी पत्नियों से मिलकर बड़े प्रसन्न होते हैं । बन्दिजन यशोवर्मा का जय-जयकार करते हैं। राजा अन्तःपुर की रानियों के साथ क्रीड़ा में समय यापन करता है। यहाँ स्त्रियों की क्रीडाओं और उनके सौंदर्य का वर्णन किया गया है। ___इसके पश्चात् कवि अपना इतिहास लिखता है । वह राजा यशोवर्मा के राजदरबार में रहता था। भवभूति, भास, ज्वलनमित्र, कुन्तिदेव, रघुकार, सुबंधु और हरिश्चन्द्र का प्रशंसक था।