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महावीरचरिय
५५७ गोशाल के साथ भ्रमण किया। वैश्यायन के प्रसंग में वेश्याओं द्वारा गणिकाओं की विद्याओं के सिखाये जाने का उल्लेख है। गोशाल को तेजोलेश्या की प्राप्ति हुई।
__सातवें प्रस्ताव में महावीर के परिषह-सहन और केवलज्ञानप्राप्ति का वर्णन है। उनके वैशाली पहुँचने पर शंख ने उनका आदर-सत्कार किया। गंडकी नदी पार करते समय नाविक ने उपसर्ग किया । वाणिज्यग्राम में आनन्द गृहपति ने आहार दिया। दृढ़भूमि में संगम ने उपसर्ग किये। उसके बाद महावीर ने आलभिका, सेयविया, श्रावस्ती, कौशांबी, वाराणसी, और मिथिला में विहार किया | कौशांबी में चन्दना द्वारा कुल्माष का दान ग्रहण कर उनका अभिग्रह पूर्ण हुआ। उनके कानों में कीलें ठोक दी गई। मध्यम पावा पहुँचकर महावीर को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई।
आठवें प्रस्ताव में महावीर के निर्वाणलाभ का कथन है । मध्यम पावा के महासेनवन उद्यान में समवशरण की रचना की गई। भगवान का उपदेश हुआ। ११ गणधरों ने प्रतिबोध प्राप्त कर दीक्षा ग्रहण की। यहाँ चन्दनबाला की दीक्षा, चतुर्विध संघ की स्थापना, ऋषभत्त और देवानन्दा की दीक्षा, क्षत्रियकुंड में समवशरण, महावीर के दामाद जमालि का माता-पिता की आज्ञा से दीक्षाग्रहण, जमालि का निह्नव, प्रियदर्शना का बोध, सुरप्रिय यक्ष का महोत्सव, राजा शतानीक का मरण, रानी मृगावती की दीक्षा, श्रावस्ती में गोशाल का आगमन, उसका जिनत्व का अपलाप, तेजोलेश्या का छोड़ना, गोशाल की मृत्यु, सिंह द्वारा लाई हुई औषधि से महावीर का आरोग्यलाभ, गोशाल के पूर्वभव, राजगृह में महावीर का श्रेणिक आदि को धर्मोपदेश, मेघकुमार की दीक्षा, नंदिषेण की दीक्षा, प्रसन्नचन्द्र का प्रतिबोध, १२ व्रतों की कथायें, गागलि की प्रव्रज्या, महावीर का मिथिला में गमन, और उनके निर्वाणोत्सव का वर्णन है।