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५६० प्राकृत साहित्य का इतिहास
जो परपीड करइ निच्चिंतउ, सो भवि भमइ दुक्खसंतत्तउ । __-दूसरे को पीड़ा नहीं पहुँचाना ही धर्म का परम अर्थ है । जो दूसरों को निश्चिंत होकर पीड़ा देता है, वह दुखों से संतप्त होकर परिभ्रमण करता है। ___यहाँ गारुडमंत्र और अवस्वापिनी विद्या का उल्लेख है। सिरिवच्छकहा में विद्यामठ का उल्लेख है। वर्षाऋतु का वर्णन है। उस समय हालिक अपने खेतों में हल जोतते हैं; दाँत पीस कर और पूंछ मरोड़ कर वे बैल हाँकते हैं । सीहकथा में मस्तक पर विचित्र रंग की टोपी लगाये एक योगी का उल्लेख है । रक्तचंदन का उसने तिलक लगाया था और वह मृगचर्म धारण किये हुए था, वह हुंकार छोड़ रहा था।' कमलसिट्ठीकहा में आमों की गाड़ी का उल्लेख है । पारसदेश से तोते मँगाये जाते थे। बंधुदत्त की कथा में जल की एक बूंद में इतने जीव बताये हैं जो समस्त जंबूद्वीप में भी न समा सकें। मित्र और अमित्र का लक्षण देखिये
भवगिह मज्झम्मि पमायजलणजलियम्मि मोहनिदाए । जो जग्गवइ स मित्तं वारंतो सो पुण अमित्तं ॥
-संसाररूपी घर के प्रमादरूपी अग्नि से जलने पर मोहरूपी निद्रा में सोते हुए पुरुष को जो जगाता है वह मित्र है, और जो उसे जगाने से रोकता है वह अमित्र है।
देवदत्तकथा में भूतबलि और शासनदेवी का उल्लेख है। वीरकुमारकथा में बंगालदेश का उल्लेख है। दुग्गकथा में त्रिपुरा विद्यादेवी के प्रसाधन के लिये कनेर के फूल और गूगल आदि लेकर मलय पर्वत पर जाने का कथन है। दुल्लहकथा में इंद्रमह, स्कंदमह और नागमह की चर्चा है। दत्तकथा में रात्रिभोजनत्याग का प्रतिपादन है। रात्रिभोजन-त्याग करनेवाला व्यक्ति
१. नेपाल के राजकीय संग्रहालय में कनटोप आदि धारण किये हुए जालंधर की एक मूर्ति है, इस वर्णन से उसकी समानता है।