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सुपासनाहचरिय
५५९ दूसरे प्रस्ताव में तीर्थकर के जन्म और निष्क्रमण का वर्णन करते हुए देवों द्वारा मेरुपर्वत के ऊपर जन्माभिषेक का सरस वर्णन है। केवलज्ञान नाम के तीसरे प्रस्ताव में लकुट आसन, गरुड आसन तथा छट्ट, अट्ठम आदि उग्र तपों का उल्लेख करते हुए तीर्थंकर को केवलज्ञान की प्राप्ति बताई है। इसके पश्चात् भगवान् 'धर्म का उपदेश देते हैं। इस भाग में अनेक कथाओं का वर्णन है। सम्यक्त्व-प्रशंसा में चम्पकमाला का उदाहरण है। चम्पकमाला चूडामणिशास्त्र की पण्डिता थी और इस शास्त्र की सहायता से वह यह जानती थी कि उसका कौन पति होगा तथा उसके कितनी संतान होंगी| पुत्रोत्पत्ति के लिये काली देवी की तर्पणा की जाती थी। पुत्रों को अब्रह्म का हेतु प्रतिपादित करते हुए कहा है यदि पुत्रों के होने से स्वर्ग की प्राप्ति होती हो तो बकरी, सूअरी, कुतिया, शकुनि और कछवी को सब से पहले स्वर्ग मिलना चाहिये । शासनदेवी का यहाँ उल्लेख है । अर्थशास्त्र में अर्थ, काम और धर्म नामक तीन पुरुषार्थों को बताया है । सम्यक्त्व के आठों अंगों को समझाने के लिये आठ उदाहरण दिये हैं। भक्खर द्विज की कथा में विद्या के द्वारा आकाश में गमन, धन-कनक की प्राप्ति, इच्छानुसार रूपपरिवर्तन और लाभादि का परिज्ञान बताया है। कृष्ण चतुर्दशी के दिन रात्रि के समय श्मशान में बैठकर विद्या की सिद्धि बताई है। ब्रह्मचर्य पालनेवाले को ब्राह्मण, तथा स्त्रीसंग में लीन पुरुष को शूद्र कहा गया है। भीमकुमार की कथा में नरमुंड की माला धारण किये हुए कापालिक का वर्णन है। कुमार ने उसके साथ रात्रि के समय श्मशान में पहुँच कर मंडल आदि लिखकर और मंत्रदेवता की पूजा करके विद्यासिद्धि करना आरंभ किया। नरमुंडों से मंडित काली का यहाँ वर्णन है। विजयचंद की कथा में शाश्वत सुख प्रदान करनेवाले जैनधर्म का अपभ्रंश में वर्णन है। पर पीडा न देने को ही सच्चा धर्म कहा हैएहु धन्मु परमत्थु कहिज्जइ, तं परपीडि होइ तं न किजइ ।