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महावीरचरिय सुप्रसिद्ध कवियों का प्रभाव स्पष्ट लक्षित होता है । संस्कृत के काव्यों के साथ इसकी तुलना की जा सकती है। बीच-बीच में संस्कृत के श्लोक उद्धृत हैं, अनेक पद्य अवहट्ट भाषा में लिखे गये हैं जिन पर गुजरात के नागर अपभ्रंश का प्रभाव है । देशी शब्दों के स्थान पर तद्भव और तत्सम शब्दों का प्रयोग ही अधिक है । छन्दों की विविधता देखने में आती है। __ प्रथम प्रस्ताव में सम्यक्त्वप्राप्ति का निरूपण है। दूसरे में ऋषभ, भरत, बाहुबलि तथा मरीचि के भवों आदि का वर्णन है। मरीचि के वर्णन-प्रसंग में कपिल, और आसुरि की दीक्षा का उल्लेख है। तीसरे प्रस्ताव में विश्वभूति की वसन्तक्रीड़ा, रणयात्रा, संभूति आचार्य का उपदेश और विश्वभूति की दीक्षा का वर्णन है। रिपुप्रतिशत्रु ने अपनी कन्या मृगावती के साथ गन्धर्वविवाह कर लिया, उससे प्रथम वासुदेव त्रिष्टष्ठ का जन्म हुआ। त्रिपृष्ठ का अश्वग्रीव के साथ युद्ध हुआ जिसमें अश्वग्रीव मारा गया | यहाँ गोहत्या के समान दूत, वेश्या और भांड़ों के वध का निषेध किया है। धर्मघोषसूरि का धर्मोपदेश संगृहीत है । प्रियमित्र चक्रवर्ती की दिग्विजय का वर्णन है । अन्त में प्रियमित्र दीक्षा ग्रहण कर मुनिधर्म का पालन करते हैं। चौथे प्रस्ताव में प्रियमित्र का जीव नन्दन नामका राजा बनता है।' घोरशिव तपस्वी वशीकरण आदि विद्याओं में निष्णात था। वह श्रीपर्वत' से आया था और जालंधर के लिए प्रस्थान कर
१. यह प्रस्ताव नरविक्रमचरित्र के नाम से संस्कृत छाया के साथ नेमिविज्ञान ग्रंथमाला में वि० सं० २००८ में अहमदाबाद से प्रकाशित हुआ है।
२. यह मद्रास राज्य में करनूल जिले में एक पवित्र पर्वत माना जाता है । सुबन्धु ने अपनी वासवदत्ता में श्रीपर्वत का उल्लेख किया है। पद्मपुराण ( उत्तरखण्ड, अध्याय ११) में इसे मल्लिकार्जुन का स्थान माना है। भवभूति ने मालतीमाधव (अंक १) में इसका