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पासनाहचरिय किया । वज्रनाभ किसी पथिक के मुख से बंगाधिपति की कथा सुनते हैं। बंगाधिपति की विजया नाम की कन्या को कोई विद्याधर उठाकर ले जाता है। उसकी प्राप्ति के लिये बंगराज मन्त्र की साधना करते हैं। कुलदेवता कात्यायनी की पूजा करके वे अपनी कन्या का समाचार पूछते हैं । उस समय वहाँ अनेक मन्त्र-तन्त्रों में कुशल, वाममार्ग में निपुण भागुरायण नाम का गुरु रहता था। उसने यह दुस्साध्य कार्य करने के लिये अपनी असमर्थता प्रकट की। राजा को उसने एक मन्त्र दिया और कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को श्मशान में लाल कणेर के पुष्पों की माला धारण कर उस मन्त्र की १००८ जाप द्वारा चण्डसिंह नाम के वेताल को सिद्ध करने की विधि बताई । राजा ने श्मशान में पहुँचकर एक स्थान पर एक मण्डल बनाया, दिशाओं को बलि अर्पित की, कवच धारण किया और नाक के अग्रभागपर दृष्टि स्थापित कर चण्डसिंह वेताल का मन्त्र पढ़ना आरम्भ कर दिया | कुछ समय पश्चात् वेताल हाथ में कैची लिये हुए उपस्थित हुआ। उसने राजा से अपने मांस
और रक्त से उसका कपाल भर देने के लिये कहा | राजा ने तलवार से अपनी जांघ काट कर उसे मांस अर्पित किया और रुधिर पान कराया । वेताल ने प्रसन्न होकर राजकुमारी का पता बता दिया। राजकुमारी का वज्रनाभ के साथ विवाह हो गया और बाद में मुनि का उपदेश सुनकर वज्रनाभ ने दीक्षा ले ली।
तीसरे प्रस्ताव में मरुभूति वाराणसी के राजा अश्वसेन के घर पुत्ररूप में उत्पन्न हुए, उनका नाम पार्श्वनाथ रक्खा गया। वाराणसी नगरी का यहाँ सरस वर्णन किया गया है। राजा अश्वसेन ने पुत्रजन्म का उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया । वर्धापन आदि क्रियायें संपन्न हुई। बड़े होने पर प्रभावती से उनका विवाह हुआ। विवाह-विधि का यहाँ वर्णन है। उधर कमठ का जीव तापसों के व्रत धारण कर पंचाग्नि तप करने लगा | नगरी के बहुत से लोग उसके दर्शनों के लिये जाते और