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धर्मोपदेशमाला-विवरण ५०३ यहाँ प्रयागतीर्थ की उत्पत्ति का उल्लेख है।
नूपुरपंडित की कथा प्राचीन जैन शास्त्रों में वर्णित है। स्त्रियों के निन्दासूचक वाक्यों का यहाँ उल्लेख है। आत्मदमन के उपदेश के लिये सिद्धक, और भाव के अनुरूप फल का प्रतिपादन करने के लिये सांव-पालक के आख्यान वर्णित हैं। सुभद्रा की कथा जैन शास्त्रों में सुप्रसिद्ध है। सत्संग का फल दिखाने के लिये बंकचूलि, कर्तव्य का पालन करने के लिये वणिकस्त्री, गुरु के आदेश का पालन करने के लिये राजपुरुष, गुरु का पराभव दिखाने के लिये इन्द्रदत्त के पुत्र, और क्रोध न करने के लिये मेतार्य और दमदन्त की कथायें कही गई हैं। आषाढ़सूरि, श्रेयांस, आर्या चन्दना, कृतपुण्य, शालिभद्र, मूलदेव, आर्यरक्षित, चित्रकर-सुत और दशार्णभद्र के आख्यान, प्राचीन जैन ग्रंथों में भी आते हैं। मूलदेव की कथा में एक स्थान पर कहा है
अपात्रे रमते नारी, गिरौ वर्षति माधवः ।
नीचमाश्रयते लक्ष्मीः, प्राज्ञः प्रायेण निर्धनः॥ -नारी अपात्र में रमण करती है, मेघ पर्वत पर बरसता है, लक्ष्मी नीच का आश्रय लेती है, और विद्वान् प्रायः निर्धन रहता है। फिर
सारय-ससंक-धवला कित्ती भुवणं न जस्स धवलेइ । नियपोटभरणवावडरिट्ठसरिच्छेण किं तेण ? ॥
-शरद्कालीन चन्द्रमा के समान जिसकी धवल कीर्ति लोक को उज्ज्वल नहीं करती, वह अपने पेट भरने में संलग्न किसी मदोन्मत्त सांड के समान है, उससे क्या लाभ ? __ तत्पश्चात् नन्दिषेण, सुलसा, प्रत्येकबुद्ध, ब्रह्मदत्त, त्रिपृष्ठवासुदेव, चाणक्य, नागिल, वंचक वणिक, सुभूम चक्रवर्ती चित्रकारसुता, सुबन्धु, केशी गणधर आदि की कथाओं का वर्णन है। , मधुबिन्दु कूप-नर की कथा समराइच्चकहा में आ चुकी है।