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५०८ प्राकृत साहित्य का इतिहास मर जाने पर वह उसकी हड्डियों का संग्रह करके उनकी पूजा करने लगा। फिर एक दिन बनारस जाकर उसने उन हड्डियों को गंगा में सिरा दिया।
हरिवंशकुल की उत्पत्ति को दस आश्चयों में गिनाया है। इस प्रसंग पर दशाह राजाओं का उल्लेख है। फिर कंस का वृत्तान्त, वसुदेव का चरित्र, चारुदत्त की कथा, अनार्य वेदों की उत्पत्ति, देवकी का विवाह, कृष्ण का जन्म, नेमिनाथ का जन्म, कंसबध, राजीमति का जन्म, नेमिनाथ का वैराग्य आदि का वर्णन है।
वेदों की उत्पत्ति के संबंध में कहा है कि जन्नवक्क (याज्ञवल्क्य) नामक तापस और सुलसा के संयोग से आश्रम में पुत्र की उत्पत्ति हुई। पीपल की छाया में बड़े होने के कारण इसका नाम पिप्पलाद पड़ा। सांगोपांग वेदों का उसने अध्ययन किया तथा अपने माता-पिता को वाद में हराया। बाद में जब उसे पता चला कि वह शीलभ्रष्ट माता-पिता का पुत्र है तो उसने अपने माता-पिता को मारने के लिये अनार्य वेदों की रचना की जिनमें पितृमेध, मातृमेध, पशुमेध, आदि का प्रतिपादन किया गया । टंकण देश में भी पशुमेध यज्ञ का प्रचार हो गया था, रुद्रदत्त ने इस यज्ञ को बंद कर जिन धर्म का प्रचार किया। जान पड़ता है कि त्रियों को भी वेदपठन का निषेध नहीं था। वसुदेव जब घूमते-फिरते किसी ग्राम में पहुँचे तो वहाँ ब्राह्मण आदि सब लोग वेदाभ्यास में संलग्न थे। किसी ब्राह्मण की क्षत्रियाणी भार्या से उत्पन्न सोमश्री नाम की कन्या ने भी समस्त वेदों का अभ्यास किया था। उसका प्रण था कि जो उसे वेदाभ्यास में हरा देगा उसके साथ वह विवाह कर लेगी। कृष्ण जब ब्रह्मदत्त नामक ब्राह्मण के समीप वेदाभ्यास करने गये तो उसने प्रश्न किया कि तुम अनार्य वेदों का अध्ययन करना चाहते हो या आर्य वेदों का ? यहाँ भरत चक्रवर्ती को आर्य वेदों का तथा पर्वतक, मधुपिंग और पिप्पलाद को अनार्य