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भवभावना -मेरे घर में पैसा नहीं है और लोग उत्सव मनाने में लगे हैं। बच्चे मेरे रो रहे हैं, अपनी घरवाली को मैं क्या दूँ ? भेंट देने को भी तो कुछ मेरे पास नहीं, मेरे स्वजन-संबंधी अपनी समृद्धि में मस्त हैं, दूसरे धनी लोग भी तिरस्कार ही करते हैं, वे स्थान नहीं देते। आज मेरे घर घी, तेल, नमक, इंधन और वस्त्र कुछ भी तो नहीं है। तौनी (मिट्टी का बर्तन) भी आज खाली है, कल कुटुम्ब का क्या होगा ? घर में कन्या सयानी हो रही है, लड़का अभी छोटा है इसलिये धन कमा नहीं सकता | कुटुंब के लोग बीमार हैं और दवा लाने के लिये पास में पैसा नहीं। घरवाली गुस्से से मुँह फैलाये बैठी है, बहुत से पाहुने घर में आये हुए हैं। घर पुराना हो गया है, वह भी चूता है, सब जगह पानी गिर रहा है। औरत मेरी लड़ाईझगड़ा करती है, परिवार के लोग असंयमी हैं, राजा प्रतिकूल है, इस देश में अब रहा नहीं जाता, कहीं और जाना चाहता हूँ | क्या करूँ ? क्या समुद्र में प्रवेश कर जाऊँ ? पृथ्वी के उस पार पहुँच जाऊँ ? किसी धातु का धमन करूँ ? किसी विद्या या मंत्र की साधना करूँ ? या फिर किसी देव की अर्चना करूँ ? मेरा शत्रु आज भी जीवित है, मेरा इष्ट प्रभु मुझसे रूठ गया है, धनवान अपना कर्ज वापिस माँगते हैं, कहाँ जाऊँ ? ।
यह ब्राह्मण अपनी गर्भवती स्त्री के लिये घी, गुड़ का प्रबंध करने के वास्ते धन का उपार्जन करने गया है। रास्ते में उसे एक विद्यामठ मिला जहाँ अध्यापक अपने शिष्यों को नीतिशास्त्र की शिक्षा देते हुए धनोपार्जन की मुख्यता का प्रतिपादन कर रहे थे। ब्राह्मण ने प्रश्न किया कि महाराज! किस उपाय से धन का उपार्जन किया जाय | अध्यापक ने उत्तर दिया कि ईख का खेत, समुद्रयात्रा, योनिपोषण (वेश्यावृत्ति), और राजाओं की कृपाइन चार प्रकारों से क्षण भर में दरिद्रता नष्ट हो जाती है
खेत्तं उच्छूण समुद्दसेवणं जोणिपोसणं चेव । निवईणं च पसाओ खणेण निहणंति दारिद