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प्राकृत साहित्य का इतिहास बना हुआ मैं सीता को अपने घर ले आया। अथवा स्वभावतः कुटिल स्त्रियों का स्वभाव ही ऐसा होता है, वे दोषों की आगार हैं और उनके शरीर में काम का वास है। स्त्रियाँ दुश्चरित्र का मूल हैं और मोक्ष में विघ्न उपस्थित करनेवाली हैं।" यह सोचकर राम ने लक्ष्मण को आदेश दिया कि सीता को निर्वासित कर दिया जाय | इस समय सीता के साथ जाने वाले सेनापति का हृदय भी द्रवित हो उठा। उसने इस अकर्म के लिये अपने आपको बहुत धिक्कारा | वन में सीता ने लव और कुश को जन्म दिया । लव-कुश का रामचन्द्र से समागम हुआ, सीता की अमिपरीक्षा ली गई। सीता ने घोषणा की कि राम को छोड़कर अन्य किसी पुरुष की मन, वचन, काया से स्वप्न में भी यदि उसने अभिलाषा की हो तो यह अग्नि उसे जलाकर भस्म कर दे, और वह अग्नि में कूद पड़ी। लेकिन सीता के निर्मल चरित्र के प्रभाव से अग्निकुंड के स्थान पर निर्मल जल प्रवाहित होने लगा। रामचन्द्र ने सीता से क्षमा प्रार्थना की, लेकिन सीता ने केशलोंच कर के जैन दीक्षा स्वीकार कर ली। लव और कुश ने भी दीक्षा ग्रहण कर ली। इधर लक्ष्मण की मृत्यु हो गई, मर कर वे नरक में गये । रामचन्द्र ने तप करके निर्वाण प्राप्त किया ।
हरिवंसचरिय विमलसूरि की दूसरी रचना हरिवंसचरिय है जिसमें उन्होंने हरिवंश का चरित लिखा है । यह अनुपलब्ध है।
जंबूचरिय (जंबूचरित) जंबूचरित प्राकृत भाषा की एक सुंदर कृति है जिसके रचयिता नाइलगच्छीय वीरभद्रसूरि के शिष्य अथवा प्रशिष्य गुणपाल मुनि थे। इस ग्रन्थ की रचना-शैली आदि से अनुमान . १. मुनि जिनविजय जी द्वारा संपादित होकर सिंघी जैन ग्रंथमाला, . बंबई द्वारा यह ग्रंथ प्रकाशित हो रहा है। मुनि जिनविजय जी की कृपा से इसकी मुद्रित प्रति मुझे देखने को मिली है।