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पउमचरिय
५३३ के लिये प्रस्थान किया। उधर से रावण भी अपनी सेना लेकर युद्ध के लिये तैयार हो गया। दोनों सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ । लक्ष्मण को शक्ति लगी जिससे वे मूर्छित होकर गिर पड़े। लंका में फाल्गुन मास में अष्टाह्निका पर्व मनाये जाने का उल्लेख है। पूर्णभद्र और मणिभद्र नाम के यक्षों के नाम आते है।' रावण ने किसी मुनि के पास परदारत्याग का व्रत ग्रहण किया था, अतएव सीता को प्रसन्न करके ही उसने उसे प्राप्त करने का निश्चय किया । मन्दोदरी ने रावण को समझाया कि अठारह हजार रानियों से भी जब तुम्हारी तृप्ति नहीं हुई तो फिर सीता से क्या हो सकेगी ? उसने अपने पति को परमहिला का त्याग करने का उपदेश दिया। लक्ष्मण और रावण का युद्ध हुआ और लक्ष्मण के हाथ से रावण का वध हुआ। सीता और राम का पुनर्मिलन हुआ। सब ने मिलकर अयोध्या के लिए प्रस्थान किया । राम, लक्ष्मण और सीता का भव्य स्वागत हुआ। भरत
और कैकेयी ने दीक्षा ग्रहण कर ली | भरत ने निवोंण प्राप्त किया, कैकेयी को भी सिद्धि प्राप्त हुई। इसके बाद बड़ी धूमधाम से रामचन्द्र का राज्याभिषेक हुआ। यहाँ राम और लक्ष्मण की अनेक स्त्रियों का उल्लेख है। सीता को जिनपूजा करने का दोहद उत्पन्न हुआ। एक दिन अयोध्या के कुछ प्रमुख व्यक्ति राम से मिलने आये। उन्होंने इस बात की खबर दी कि नगर भर में सीता के संबंध में अनेक किंवदंतियाँ फैली हुई हैं। लोग कहते हैं कि सीता को रावण हर कर ले गया था, उसने सीता का उपभोग किया, फिर भी राम ने उसे अपने घर में रख लिया। यह सुनकर राम को बहुत दुःख हुआ। वे सोचने लगे-"जिसके कारण मैंने राक्षसाधिप के साथ युद्ध किया, वही सीता मेरे यश को कलंकित कर रही है । तथा लोगों का यह कहना ठीक ही है, क्योंकि पर-पुरुष के घर में रहने के पश्चात् भी मदन से मूढ़
१. यक्षों के लिये देखिये जगदीशचन्द्र जैन, लाइफ इन ऐंशियेण्ट इण्डिया, पृष्ठ २२०-३१।