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५२८ प्राकृत साहित्य का इतिहास वंश के आचार्य राहु के प्रशिष्य थे। स्वयं ग्रन्थकर्ता के कथनानुसार महावीर निर्वाण के ५३० वर्ष पश्चात (ईसवी सन् के ६० के लगभग), पूर्वो के आधार से उन्होंने जैन महाराष्ट्री प्राकृत में आर्या छंद में इस राघवचरित की रचना की है। लेकिन प्रोफेसर याकोबी ने विमलसूरि का समय ईसवी सन् की चौथी शताब्दी माना है। के० एच० ध्रुव के कथनानुसार इस कृति में गाहिनी और सरह छंद का प्रयोग होने से इसका समय ईसवी सन् की तीसरी शताब्दी मानना चाहिये । विमलसूरि के मतानुसार वाल्मीकिरामायण विपरीत और अविश्वसनीय बातों से भरी हुई है, इसलिये पंडित लोग उसमें श्रद्धा नहीं करते । उदाहरण के लिये, वाल्मीकि रामायण में कहा है कि रावण आदि राक्षस मांस आदि का भक्षण करते थे, रावण का भाई कुंभकर्ण छह महीने तक सोता रहता था, और भूख लगने पर वह हाथी, भैंस आदि जो भी कुछ मिलता उसे निगल जाता था, तथा इन्द्र को पराजित कर रावण उसे शृङ्खला में बाँधकर लंका में लाया था। लेखक के अनुसार ये बातें असंभव हैं, और ऐसी ही हैं जैसे कोई कहे कि किसी हरिण ने सिंह को मार डाला अथवा कुत्ते ने हाथी को भगा दिया। राजा श्रेणिक के द्वारा प्रश्न करने पर गौतम गणधर द्वारा कही हुई रामकथा का विमलसूरि ने पउमचरिय में वर्णन किया है। बीच-बीच में अनेक उपाख्यानों, नगर, नदी, तालाब, ऋतु, आदि का वर्णन देखने में आता है। शैली में प्रवाह और ज़ोर है | काव्यसौष्ठव की अपेक्षा आख्यायिका के गुण अधिक हैं; ऐसा लगता है जैसे कोई आख्यान सुनाया जा रहा हो । वर्णन आदि के प्रसंगों पर काव्यत्व भी दिखाई दे जाता है। शब्दकोष समृद्ध है, कितने ही देशी शब्द जहाँ-तहाँ देखने में आते हैं । व्याकरण के विचित्र रूप पाये जाते हैं । 'एवि,' 'कवण' आदि रूप अपभ्रंश के जान पड़ते हैं।
सूत्रविधान नाम के प्रथम उद्देशक में इस ग्रन्थ को सात