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भवभावना
५०९ वेदों का कर्ता बताया गया है। वसुदेव ने इन दोनों वेदों का अध्ययन किया।
वाचा, दृष्टि, निजूह (मल्लयुद्ध) और शस्त्र इन चार प्रकार के युद्धों का उल्लेख है। मल्लों में निजूहयुद्ध, वादियों में वाक्युद्ध, अधम जनों में शस्त्रयुद्ध तथा उत्तम पुरुषों में दृष्टियुद्ध होता है। मथुरा नगरी में मल्लयुद्ध के लिये बड़ी धूमधाम से तैयारियां की जाती थीं, वणिक् लोग यवनद्वीप से अपनी नावों में माल भर कर लाये और द्वारका में आकर उन्होंने बहुत-सा धन कमाया । यहाँ से वे लोग मगधपुर (राजगृह) गये । वहाँ रानी ने बहुमूल्य रत्न, कंबल आदि देखकर उनसे माँगे। इस पर वणिक लोगों को बहुत बुरा लगा, और वे सोचने लगे कि हमारे भाग्य फूट गये जो हम द्वारका छोड़कर यहाँ आये । व्यापारियों ने कहा, यादवों को छोड़कर इन वस्तुओं का इच्छित मूल्य और कोई नहीं दे सकता।
रैवतक पर्वत पर वसन्तक्रीडा और जलक्रीडा का सरस वर्णन है।
नेमिनाथ के चरित्र के बाद अनित्यभावना प्रारंभ होती है। इस प्रसंग पर बलिराजा और भुवनभानु के चरित्र का विस्तार से वर्णन है। अशरणभावना में कौशांबी के राजा चन्द्रसेन, सोमचन्द्र, नन्द, कुचिकर्ण, तिलकश्रेष्ठी, सगर चक्रवर्ती और हस्तिनापुर के राजकुमार की कथायें हैं। एकत्वभावना में राजा मधु का दृष्टान्त दिया है। संसारभावना में चारों गतियों का स्वरूप उदाहरणपूर्वक प्रतिपादित किया है। इस प्रसंग में बताया है कि सरस्वती नाम की कोई सार्थवाह की कन्या किसी ब्राह्मण के पास स्त्रियोचित कलाओं का अध्ययन किया करती थी । वणिक्पुत्र देवदत्त आदि विद्यार्थी भी उसी गुरु से विद्या का अध्ययन करते थे। एक बार गुरु जी अपनी स्त्री को पीटने लगे तो विद्यार्थियों ने उन्हें रोका। विद्याध्ययन समाप्त करने के पश्चात्