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भवभावना
५०७ तीसरी ने कहा-यदि इसने मुझे प्राप्त नहीं कर लिया तो फिर यह हुआ ही क्या ? चौथी ने कहा-हे सखि ! मैं तो उसे बड़ी निर्दय समझूगी जो कंबु के समान इसकी ग्रीवा को अपने बाहुपाश से बांधेगी। पाँचवीं कहने लगी-मेरुपर्वत की शिला के समान विस्तृत इसके वक्षस्थल पर कोई कृतपुण्या ही क्रीडा से श्रान्त होकर अलीक निद्रा को प्राप्त होगी। इस प्रकार वे एक दूसरे को धकेलती हुई रास्ता मांग रही थीं। __ शंख का जन्म होने पर राजा को बधाइयाँ दी गई। रंगे हुए धागों से सारे घर में रंगोलियाँ बनाई गई, कनकघटित हल
और मूसलों को खड़ा कर दिया गया, सर्वत्र घी और गुड़ से युक्त सोने के दीपक जलाये गये, द्वारों पर कमलों से आच्छादित कलश रक्खे गये, लोगों की रक्षा के लिये द्वार पर हाथ में तलवार लिये सुभट नियुक्त किये गये, ध्वजायें फहराई गई, गली-मोहल्लों में तोरण लटकाये गये, मार्गों में, चौराहों पर तथा नगरवासियों के द्वारों पर सोने के चावलों के ढेर लगा दिये गये | बंदी जेल से छोड़ दिये गये, दस दिन की अमारी (मत मारो) घोषणा की गई । जिनमंदिरों में पूजा की गई, दस दिन तक कर उगाहना और किसी को दंड देने की मनाई कर दी गई, दुंदुभि बाजे बजने लगे, वारवनिताओं के नृत्य होने लगे, पुष्प, तांबूल और वस्त्र आदि बांटे जाने लगे, द्राक्ष और खजूर का भोजन परोसा जाने लगा, द्राक्ष, खजूर और खांड का शर्बत पिलाया जाने लगा। __ बड़े होने पर कुमार को लेखाचार्य के पास भेजा गया जहाँ उसने व्याकरण, न्याय, निमित्त, गणित, सिद्धांत, मंत्र, देशीभाषा, शस्त्रविद्या, वास्तुशास्त्र, वैद्यक, अलंकार, छंद, ज्योतिष, गारुड, नाटक, काव्य, कथा, भरत, कामशास्त्र, धनुर्वेद, हस्तिशिक्षा, तुरगशिक्षा, चूत, धातुवाद, लक्षण, कागरुत, शकुन, पुराण, अंगविद्या तथा ७२ कलाओं की शिक्षा प्राप्त की।
मृतक की हड्डियों को गंगा में सिराने का रिवाज था । कोई राजा का मंत्री अपनी पत्नी से बहुत स्नेह करता था। पत्नी के