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प्राकृत साहित्य का इतिहास द्विजतनय की कथा से मालूम होता है युवती-चरित्र की शिक्षा प्राप्त करने के लिये लोग पाटलिपुत्र जाया करते थे। लाट देश में मामा की लड़की से, उत्तर में सौतेली मां से और कहीं अपनी भौजाई के साथ विवाह करना जायज़ माना जाता था। स्त्रियों के संबंध में उक्ति हैरज्जावेंति न रज्जति लेंति हिययाइं न उण अप्पेंति । छप्पण्णयबुद्धीओ जुवईओ दो विसरिसाओ।
-स्त्रियाँ दूसरे का रंजन करती हैं लेकिन स्वयं रंजित नहीं होती, वे दूसरों का हृदय हरण करती हैं लेकिन अपना हृदय नहीं देती। दूसरों की छप्पन बुद्धियाँ उनकी दो बुद्धियों के बराबर हैं।
धन सार्थवाह की कथा में मार्गों के गुण-दोष प्रतिपादन करते हुए सार्थ के साथ जानेवाले व्यापारियों के कर्तव्यों का उल्लेख है। ग्रामयक की कथा में एक ग्रामीण की कथा है। समयज्ञ साधु की कथा में एक उक्ति है
सुद्धसहावम्मि जणे जो दोसं देइ पडइ तस्सेव । गुंडिजइ नणु सो चिय जो धूलिं खिवइ चंदस्स ॥
-शुद्ध स्वभाव वाले मनुष्य को जो कोई दोषी ठहराता है, वह दोष उसके ऊपर आता है। उदाहरण के लिये, यदि कोई व्यक्ति चन्द्रमा के ऊपर धूल फेंकने का प्रयत्न करे तो वह धूल उसी के ऊपर आकर गिरती है।
विष्णुकुमार की कथा में १४ रनों की उत्पत्ति का उल्लेख है। श्रावकसुत की कथा में श्मशान में पहुंच कर कापालिकों द्वारा मंत्रसिद्धि किये जाने का उल्लेख है। काकजंघ की कथा में युवतियों के सामने कोई गुह्य बात प्रकट न करने का आदेश है। औत्पत्तिकी आदि चार प्रकार की बुद्धियों का प्रतिपादन करने के लिये जैन आगम-ग्रन्थों में वर्णित रोहक आदि की कथायें यहाँ भी कही गई हैं। दो मल्लों की कथा में मल्ल-महोत्सव का वर्णन है।