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विवेकमंजरी आराधना धारण करनेवालों में मरुदेवी आदि के दृष्टांत दिये गये हैं। तत्पश्चात् अर्हत् , लिंग, शिक्षा, विनय समाधि, मनोशिक्षा, अनियतविहार, राजा और परिणाम नामके द्वारों को स्पष्ट करने के लिये क्रम से वंकचूल, कूलवाल, मंगु आचार्य श्रेणिक, नमिराजा, वसुदत्त, स्थविरा, कुरुचन्द्र, और वनमित्र के कथानक दिये गये हैं। श्रावकों की दस प्रतिमाओं का स्वरूप बताया गया है। फिर जिनभवन, जिनबिंब, जिनबिम्ब का पूजन, प्रौषधशाला आदि दस स्थानों का निरूपण है।
विवेकमंजरी इसके कर्ता महाकवि श्रावक आसड हैं जो मिल्लमाल (श्रीमाल) वंश के कटुकराज के पुत्र थे । वे भीमदेव के महामात्य पद पर शोभित थे। विक्रम संवत् १२४८ (ईसवी सन् ११६१) में उन्होंने विवेकमंजरी नामके उपदेशात्मक कथा-ग्रन्थ की रचना की। आसड ने अपने आपको कवि कालिदास के समान यशस्वी बताया है। वे 'कविसभाशृङ्गार' के रूप में प्रसिद्ध थे। उन्होंने कालिदास के मेघदूत पर टीका, उपदेशकंदलीप्रकरण तथा अनेक जिनस्तोत्र और स्तुतियों की रचना की है। बालसरस्वती नामक कवि का पुत्र तरुण वय में ही काल-कवलित हो गया, उसके शोक से अभिभूत हो अभयदेवसूरि के उपदेश से कवि इस ग्रन्थ की रचना करने के लिये प्रेरित हुए। इस पर बालचन्द्र और अकलंक ने टीकायें लिखी हैं।
उपदेशकंदलि उपदेशकंदलि में उपदेशात्मक कथायें हैं। इसमें १२० गाथायें हैं।
उवएसरयणायर ( उपदेशरत्नाकर) इसके कर्ता सहस्रावधानी मुनिसुन्दरसूरि हैं जो बालसरस्वती
१. देखिये मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृष्ठ ३३८-९।