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४६२ प्राकृत साहित्य का इतिहास पान करती हैं, वेश्यावस्था साक्षात् स्वर्ग की भांति प्रतीत होती है, फिर और क्या चाहिये ?
रति के समान तुम्हारे रूप के कारण पुरुष तुम्हारे किंकर बन जायेंगे, तुम्हारे वश में होकर वे तुम्हें मनोभिलषित द्रव्य प्रदान करेंगे। ये सब वेश्यायें मुझे अपने उपार्जित धन का आधा भाग देती हैं, लेकिन तू मुझे सबसे प्रिय है, इसलिये तू मुझे अपनी कमाई का केवल चौथा ही भाग देना।
लेकिन नर्मदासुंदरी ने हरिणी वेश्या की एक न सुनी। उसने दुष्ट कामुक पुरुषों को बुलाकर नर्मदासुंदरी के शीलव्रत का भंग करने की भरसक चेष्टा की, फिर अपने दासों से लंबे डंडे से उसे खूब पिटवाया। लेकिन नर्मदासुंदरी अपने व्रत से विचलित न हुई। वहाँ करिणी नाम की एक दूसरी वेश्या रहती थी। उसने नर्मदासुंदरी की सहायता करने के लिये अपने घर में उसे रसोइयन रख ली। कुछ समय पश्चात् हरिणी की मृत्यु हो गई और नर्मदासुंदरी को टीका करके सजधज के साथ उसे प्रधान गणिका के पद पर बैठाया गया। बब्बर राजा को जब नर्मदासंदरी के अनुपम सौंदर्य का पता लगा तो उसने अपने दंडधारियों को भेजकर उसे बुलाया | वह स्नान कर और वस्त्राभूषणों से अलंकृत हो शिबिका में बैठ उनके साथ चल दी। रास्ते में वह एक बावड़ी में पानी पीने के लिये उतरी और जानबूझ कर गड्ढे में गिर पड़ी। उसने अपने शरीर पर कीचड़ लपेट लिया और अंडबंड बकने लगी। दंडधारियों ने राजा से निवेदन किया कि महाराज वह तो किसी ग्रह से पीड़ित मालूम होती है। राजा ने भूतवादी को बुलाया लेकिन वह भी उसे स्वस्थ नहीं कर सका। नर्मदासुंदरी अपने शरीर पर कीचड़ मल कर एक खप्पर लिये हुए घर-घर भिक्षा माँगती हुई फिरने लगी । अपनी उन्माद अवस्था को लोगों के सामने दिखाने के लिये कभी वह नाचती, कभी फूत्कार करती, कभी गाती और कभी हँसती। अन्त में वह जिनदेव नाम के श्रावक से मिली | नर्मदासुंदरी ने अपना