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४६४ प्राकृत साहित्य का इतिहास नहीं होगा जो महासती दमयंती को रात्रि के समय सोती हुई छोड़कर चलता बना। ___ उज्जयिनी के राजा प्रद्योत की कथा जैन ग्रन्थों में प्रसिद्ध है। उसके लोहजंघ, लेखाचार्य, अग्निभीरु रथ और नलगिरि हाथी नामके चार रन थे। अशोक की कथा से मालूम होता है कि धनिक लोग अपने पुत्रों के चरित्र को सुरक्षित रखने के लिये उन्हें वेश्याओं के स्वभाव से भलीमाँति परिचित करा दिया करते थे। द्वारिकादहन की कथा पहले आ चुकी है। अपभ्रंश का एक दोहा देखिये
हियडा संकुडि मिरिय जिम्व इंदिय-पसरु निवारि । जित्तिउ पुज्जइ पंगुरणु तित्तिउ पाउ पसारि ।।
-हृदय को मिर्च (१) के समान संकुचित करो जिससे इन्द्रियों के विस्तार को रोका जा सके। जितनी बड़ी चादर हो उतने ही पैर फैलाने चाहिये। । दूसरे प्रस्ताव में देवपूजा के समर्थन में देवपाल, सोम-भीम, पद्मोत्तर और दीपशिख की कथायें हैं। दीपशिख की कथा से पता लगता है कि विद्या सिद्ध करने के लिये साधक लोग श्मशान में जाकर किसी कन्या का वध करते थे। गुरुसेवा के समर्थन में राजा प्रदेशी और लक्ष्मी की कथायें है । कूलवाल की कथा जैन आगमों में प्रसिद्ध है। राजा सम्प्राति की कथा बृहत्कल्पभाष्य में आती है। सम्प्रति ने आंध्र, द्रविड़, आदि अनार्य समझे जानेवाले देशों में अपने योद्धा भेजकर जैनधर्म का प्रचार किया था। राजा कुमारपाल का अपने गुरु आचार्य हेमचन्द्र के साथ श@जय, पालिताना गिरनार आदि तीर्थों की यात्रा करने का उल्लेख है।
तीसरे प्रस्ताव में चंदनबाला, धन्य, कुरुचन्द्र, कृतपुण्य और भरत चक्रवर्ती की कथायें हैं । शीलवती की कथा बड़ी मनोरंजक है। शीलवती अजितसेन की पत्नी थी। एक दिन आधी रात के समय वह घड़ा लेकर अपने घर के बाहर गई और बहुत