________________
४९४ प्राकृत साहित्य का इतिहास दिये गये हैं जो भारतीय कथा-साहित्य के अध्ययन की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। ___ एक बार किसी बौद्ध भिक्षु ने गिरगिट को अपना सिर धुनते हुए देखा । उसी समय वहाँ एक श्वेताम्बर साधु उपस्थित हुआ। बौद्ध भिक्षु ने उसे देख कर हँसी में पूछा-“हे क्षुल्लक ! तुम तो सर्वज्ञ के पुत्र हो,' बताओ यह गिरगिट अपना सिर क्यों धुन रहा है ?" क्षुल्लक ने तुरत उत्तर दिया,-"शाक्यवति ! तुम्हें देख कर चिन्ता से आकुल हो यह ऊपर-नीचे देख रहा है। तुम्हारी डाढ़ी-मूंछ देखकर इसे लगता है कि तुम भिक्षु हो, लेकिन जब वह तुम्हारे लम्बे शाटक (चीवर) पर दृष्टि डालता है तो मालूम होता है तुम भिक्षुणी हो। इसके सिर धुनने का यही कारण है।" भिक्षु बेचारा निरुत्तर हो गया। __ एक बार किसी रक्तपट (बौद्ध भिक्षु) ने क्षुल्लक से प्रश्न किया-"इस वेन्यातट नामक नगर में कितने कौए हैं ?" क्षुल्लक ने उत्तर दिया-"साठ हजार" बौद्ध भिक्षु ने पूछा-"यदि इससे कम-ज्यादा हों तो ?” क्षुल्लक ने उत्तर दिया-"यदि कम हैं तो समझ लेना चाहिये कि कुछ विदेश चले गये हैं, और अधिक हैं तो समझना चाहिये कि बाहर से कुछ मेहमान आ गये हैं।"
किसी बालक की नाक में खेलते-खेलते लाख की एक गोली चली गई। जब बालक के पिता को पता लगा तो उसने एक सुनार को बुलाया । सुनार ने गरम लोहे की एक सलाई नाक में डालकर लाख की गोली को तोड़ दिया। उसके बाद उसने सलाई को पानी में डालकर ठंढा कर लिया। फिर उसे नाक में डालकर गोली बाहर खींच ली।
एक बार मूलदेव और कण्डरीक नाम के धूर्त कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने बैलगाड़ी में अपनी तरुण पत्नी के साथ
१. जैनधर्म में सर्वज्ञ की मान्यता का यह चिह्न कहा जा सकता है।