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उपदेशपद
४९५ एक पुरुष को जाते हुए देखा | तरुणी को देखकर कंडरीक का मन चंचल हो उठा। उसने यह बात मूलदेव से कही। मूलदेव ने कण्डरीक को एक वृक्षों के झुरमुट में छिपा दिया, और स्वयं रास्ते में आकर खड़ा हो गया। जब वह पुरुप अपनी स्त्री के साथ गाड़ी में बैठा हुआ वहाँ पहुँचा तो मूलदेव ने उससे कहा"देखो, मेरी पत्नी वृक्षों के झुरमुट में लेटी हुई है, वह प्रसवकाल में है, इसलिये जरा देर के लिये अपनी पत्नी को वहाँ भेज दो। पुरुष ने मूलदेव की प्रार्थना स्वीकार कर ली। कुछ समय पश्चात् कण्डरीक के साथ क्रीड़ा समाप्त हो चुकने पर वह मूलदेव के समक्ष उपस्थित हो हँसती हुई उससे कहने लगी-“हे प्रिय ! तुम्हारे पुत्र उत्पन्न हुआ है।" फिर अपने पति को लक्ष्य करके उसने निम्नलिखित दोहा पढ़ा
खडि गडुडी बइल्ल तुहुँ, बेटा जाया ताँह ।
रण्णिवि हुँति मिलावड़ा मित्त सहाया जाँह ।। -तुम्हारी गाड़ी और बैल खड़े हुए हैं, उसके बेटा हुआ है। जिसके मित्र सहायक होते हैं उसका अरण्य में भी मिलाप हो जाता है।
कोई बौद्ध भिक्षु सन्ध्या के समय चलते-चलते थक कर किसी दिगंबर साधुओं की वसति (अवाउडवसही) में ठहर गया। दिगंबर साधुओं के उपासकों को यह बात अच्छी न लगी। उन्होंने उसे दरवाजेवाले एक कोठे में रख दिया । कुछ ही देर बाद जब वह भिक्षु सोने लगा तो, वहाँ एक दासी उपस्थित हुई और उसने झट से अन्दर से दरवाजा बन्द कर लिया। बौद्ध भिक्षु समझ गया कि ये लोग मुझे बदनाम करना चाहते हैं। उसने कोठरी में जलते हुए दीपक में अपना चीवर जला डाला | संयोगवश वहीं पर उसे एक पीछी भी रक्खी हुई मिल गई। बस प्रातःकाल दिगम्बर वेष में अपने दाहिने हाथ से दासी को पकड़ कर जब वह कोठरी से बाहर निकला तो लोगों ने उसे देखा | भिक्षु ऊँचे स्वर में चिल्ला कर दिगम्बर