________________
औपदेशिक कथा-साहित्य धर्मदेशना जैनकथा-साहित्य का मुख्य अंग रहा है । इसलिये इस साहित्य में कथा का अंश प्रायः कम रहता है, संयम, शील, दान, तप, त्याग और वैराग्य की भावनाओं की ही इसमें प्रधानता रहती है। जैनधर्म के उपदेशों का प्रचार . करने के लिये ही जैन आचार्यों ने इस साहित्य की रचना की थी। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये उपदेशमाला नाम के अनेक ग्रन्थों की रचना हुई। उदाहरण के लिये धर्मदास, पद्मसागर, मलधारि हेमचन्द्र आदि ने उपदेशमाला, तथा जयसिंह और यशोदेव आदि विद्वानों ने धर्मोपदेशमाला नाम के पृथक्-पृथक् कथा-ग्रन्थों की रचना की जयकीर्ति ने सीलोवएसमाला लिखी । हरिभद्र ने उपदेशपद, मुनिसुंदर ने उपदेशरत्नाकर, शांतिसूरि ने धर्मरत्न, आसड ने उपदेशकंदलि आदि उपदेशात्मक ग्रंथ लिखे। इसी प्रकार उपदेशचिंतामणि, उपदेशरत्नकोश, संवेगरंगशाला, विवेकमंजरी आदि कितने ही कथाप्रन्थों की रचना हुई जिनमें त्याग चैराग्य को मुख्य बताया गया ।
उपएसमाला (उपदेशमाला) . विविध पुष्पों से गूंथी हुई माला की भाँति धर्मदासगणि ने पूर्व ऋषियों के दृष्टांतपूर्वक जिनवचन के उपदेशों को इस उपदेशमाला में गुंफित किया है।' इस कथा को वैराग्यप्रधान कहा
१. यह ग्रंथ जैनधर्मप्रसारकसभा की ओर से सन् १९१५ में प्रकाशित हुआ है। रत्नप्रभसूरि (सन् १९८२) की दोघट्ठी टीका सहित आनंदहेमजैनग्रंथमाला में सन् १९५८ में प्रकाशित। यहाँ प्राकृत पचों को संस्कृत में समझाया गया है और कथाएँ प्राकृत में