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प्राकृत साहित्य का इतिहास रूप को प्रकट कर देता है और अपनी चारों पत्नियों के साथ आनन्दपूर्वक रहने लगता है। कालांतर में माता-पिता की अनुमतिपूर्वक अपनी पत्नियों और मित्रों के साथ वह दीक्षा ग्रहण कर लेता है।
पहेलियाँ देखिये(१) किं मरुथलीसु दुलहं ? का वा भवणस्स भूसणीभणिया ?
कं कामइ सेलसुया ? कं पियइ जुवाणओ तुट्ठो ? उत्तर-कताहर।
-मरुस्थल में कौनसी वस्तु दुर्लभ है ? के (जल)। घर का भूषण कौन कहा जाता है ? कंता (कांता)। पार्वती किसकी इच्छा करती है ? हरं (शिवजी की)। किसका पान कर युवा संतुष्ट होता है ? कांताधरम् (कांता के अधर का)। (२) किं कारेइ अहंगं, पुरसामी ? का पुरी दहमुहस्स ?
__का दुन्नएण लब्भइ ? विरायए केरिसा तरूणी ? उत्तर-सालंकारा।
-नगर का स्वामी अभंगरूप (अहंग) से किसे बनाता है ? सालं (प्राकार को)। रावण की नगरी का क्या नाम है ? लंका । दुनीति से क्या प्राप्त होता है ? कारा ( कारागृह) । कैसी युवती शोभा को पाती है ? अलंकारों से भूषित ( सालंकारा)।
सुभाषित देखिये(१) दो तिन्नि वासराइं सासुरयं होइ सग्गसारिच्छं ।
पच्छा परिभवदावानलेण सव्वत्थ पज्जलइ ॥ -~-दो-तीन दिन तक ही श्वसुर का घर स्वर्ग के समान मालूम होता है, बाद में पराभव की अग्नि से वह चारों ओर से जलने लगता है। (२) रन्ने जलम्मि जलणे, दुजणजणसंकडे व विसमम्मि |
जीह व्व दंतमझे नंदइ अपमत्तया जुत्तो ॥