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प्राकृतकथासंग्रह को रत्नों की भेंट देकर उसने प्रसन्न किया। राजा ने भी उसे शुल्क से मुक्त कर दिया। उस नगरी में गंगदत्त नामका कोई धूर्त रहता था । मौका पाकर उसने धर्मदत्त से मित्रता कर ली। शनैः शनैः तिहुणदेवी के पास भी वह निस्संकोच भाव से आने-जाने लगा। एक दिन राजा ने धर्मदत्त से पूछा कि यदि तुमने कोई आश्चर्य देखा हो तो कहो। धर्मदत्त ने कहा"महाराज ! मेरे पास ऐसे जौ हैं जो बोते के साथ ही उग सकते हैं। लेकिन इस बीच में गंगदत्त ने तिहुणदेवी से गांठ-सांठ कर ब्राह्मण के दिये हुए मंत्राभिपिक्त जो इधर-उधर करवा दिये, जिससे राजा के समक्ष अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण न करने के कारण धर्मदत्त बड़ा शर्मिन्दा हुआ । अन्त में कूट नामक ब्राह्मण को बुलाया गया। उसने कहा-"मेरे सुनाये हुए दोनों आख्यान तुम भूल गये हो, तथा नीच पुरुष की मित्रता के कारण और महिलाओं का विश्वास करने के कारण तुम्हारी यह दशा हुई है।" भावना का प्रभाव प्रतिपादित करने के लिये बहुबुद्धि की कथा वर्णित है । बहुबुद्धि चंपा के रहनेवाले बुद्धिसागर मंत्री का पुत्र था । वह साहित्य, तर्क, लक्षण, अलंकार, निघंटु, शब्द, काव्य, ज्योतिष, निमित्त, संगीत और शकुनशास्त्र का पंडित था । एक दिन मंत्री ने उसे एक हार रखने के लिये दिया, लेकिन बहुबुद्धि पढ़ने में इतना व्यस्त रहता था कि वह हार रखकर कहीं भूल गया। गंगड नामके नौकर ने वह हार चुरा लिया। मंत्री ने बहुबुद्धि से हार मांगा और वह उसे न दे सका। इस पर बुद्धिसागर को बहुत क्रोध आया और उसने अपने पुत्र को घर से निकाल दिया । बहुबुद्धि घूमता-फिरता जयन्ती नगरी में आया और वहाँ किसी सुवर्णश्रेष्ठी के घर आकर रहने लगा। एक दिन उसकी दूकान पर गंगड चोरी का हार बेचने आया । सुबुद्धि ने अपना हार पहचान लिया, लेकिन गंगड ने कहा वह हार उसी का है। दोनों लड़ते-झगड़ते राजा के पास गये । सुबुद्धि जीत गया, लेकिन चालाकी से राजा ने हार अपने पास