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समराइञ्चकहा
३९९ एक अजगर ने पकड़ रक्खा था। जैसे जैसे अजगर कुरल पक्षी को खींचता, वैसे-वैसे कुरल साँप को और सांप मेंढक को पकड़ कर खींचता था। यह देखकर राजा जीव के स्वभाव की गहणा करने लगा और उसे संसार से वैराग्य हो आया । - अन्त में राजा सिंहकुमार का पुत्र आनन्द राजपद पर अभिषिक्त होकर अपने पिता की हत्या कर देता है। उस समय सिंहकुमार यही विचार करता है जैसे अनाज पक जाने पर किसान अपनी खेती काटता है, वैसे ही जीव अपने किये हुए कर्मों का फल भोगता है, इसलिये जीव को विपाद नहीं करना चाहिये।
तीसरे भव में अग्निशर्मा का जीव जालिनी बनकर अपने पुत्र के रूप में उत्पन्न हुए गुणसेन के जीव सिरिकुमार को विष देकर अपने बैर का बदला लेता है। इस अध्याय की एक अंतर्कथा में नास्तिकवादी पिंगक और विजयसिंह आचार्य का मनोरंजक संवाद' आता है।
पिंगक-पाँच भूतों के अतिरिक्त जीव कोई अलग वस्तु नहीं है। यदि ऐसा होता तो अनेक जीवों की हिंसा करने में रत मेरे पितामह (जो आपके सिद्धांत के अनुसार मर कर नरक में गये होंगे) नरक में से आकर मुझे दुष्कर्मों से बचने का उपदेश देते । लेकिन आजतक उन्होंने ऐसा नहीं किया, अतएव जीव शरीर से भिन्न नहीं है।
विजयसिंह-जैसे लोहे की शृङ्खला में बद्ध जेल में पड़ा हुआ कोई चोर बहुत चाहने पर भी अपने इष्टमित्रों से नहीं मिल सकता, इसी तरह नरक में पड़ा हुआ जीव नरक के बाहर नहीं आ सकता।
पिंगक-मेरे पिता बड़े धर्मात्मा पुरुष थे। उन्होंने श्रमणों की दीक्षा ग्रहण की थी, इसलिये आपके मतानुसार वे मर कर
१ .लगभग यही संवाद रायपलेणियसुत्त में है ।