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४०४ प्राकृत साहित्य का इतिहास सरल मार्ग से पहुँचने में कष्ट होता है, लेकिन इससे जल्दी पहुँच जाते हैं। सरल मार्ग बहुत विषम और संकटापन्न है। इस मार्ग में दो व्याघ्र और सिंह रहते हैं। इन्हें एक बार भगा देने पर भी फिर से आकर ये रास्ता रोक लेते हैं। यदि कोई रास्ता छोड़कर चले तो उसे मार डालते हैं । इस मार्ग में अनेक शीतल छायावाले सुंदर वृक्ष लगे हैं। कुछ वृक्ष ऐसे हैं जिनके फल, फूल और पत्ते झड़ गये हैं। मनोहर वृक्षों के नीचे विश्राम करना खतरे से खाली नहीं है। इसलिये इन वृक्षों के नीचे विश्राम न करके फल, फूल और पत्तेरहित वृक्षों के नीचे विश्राम करना चाहिये। रास्ते में मधुरभाषी सुंदर रूपधारी पुरुष पुकार पुकार कर कहते हैं-हे राहगीरो | इस रास्ते से जाओ । लेकिन उनकी बात कभी नहीं माननी चाहिये । मार्ग में जाते हुए जंगल का कुछ भाग आग से जलता हुआ दिखाई देगा, उस आग को सावधानी से बुझा देना चाहिये ; नहीं तो जल जाने की आशंका है। रास्ते में एक ऊँचा पहाड़ भी मिलेगा, उसे लांघ कर चले जाना चाहिये। फिर बांसों का एक झुरमुट दिखाई देगा, इसे जल्दी ही पार कर जाना चाहिये, वहां ठहरने से उपद्रव की आशंका है । इसके बाद एक गड्ढा पड़ेगा । वहाँ मनोरथ नामका एक ब्राह्मण रहता है। वह पुकार कर कहता है-हे रास्ता चलनेवालो! इस गड्ढे को थोड़ा सा भर कर आगे बढ़ना। लेकिन इस ब्राह्मण की बात पर भी ध्यान नहीं देना चाहिये। इस गड्ढे को नहीं भरना चाहिये, क्योंकि भरने से वह और बड़ा हो जाता है। मार्ग में पाँच प्रकार के फल दिखाई देंगे। इनकी तरफ दृष्टि न डालना चाहिये और न इन्हें भक्षण करना चाहिये । यहाँ बाईस प्रकार के महाकाय पिशाच प्रत्येक क्षण उपद्रव करते रहते हैं, उनकी परवा नहीं करनी चाहिये । यहाँ भोजन-पान बहुत थोड़ा मिलेगा, और जो मिलेगा वह नीरस होगा; इससे दुखी नहीं होना चाहिये। हमेशा आगे बढ़ते जाना चाहिये। रात में भी दो याम नियम से गमन करना