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કર૮ प्राकृत साहित्य का इतिहास शब्दों का प्रयोग करते थे। ताइय (ताजिक) देश के वासी कंचुक (कुप्पास) से आवृत शरीरवाले, मांस में रुचि रखनेवाले, तथा मदिरा और मदन में तल्लीन रहते थे; वे 'इसि किसि मिसि' शब्दों का प्रयोग करते थे। कोशल के वासी सर्वकला-सम्पन्न, मानी, जल्दी क्रोध करनेवाले और कठिन शरीरवाले होते थे; वे 'जल तल ले" शब्दों का प्रयोग करते थे। मरहह देश के वासी मज़बूत, छोटे, और श्यामल अङ्गवाले, सहनशील तथा अभिमान और कलह करनेवाले होते थे; ये 'दिण्णल्ले गहियल्ले२ शब्दों का प्रयोग करते थे। आंध्रदेशवासी महिला-प्रिय, संग्राम-प्रिय, सुन्दर शरीरवाले तथा रौद्र भोजन करनेवाले होते थे; वे 'अटि पुटि रहिं' शब्दों का प्रयोग करते थे।
कुमार कुवलयचंद द्वारा कुवलयमाला द्वारा घोषित पाद की पूर्ति कर दिये जाने पर कुवलयमाला कुमार के गले में कुसुमों की माला डाल देती है। तत्पश्चात् शुभ नक्षत्र और शुभ मुहूर्त में बड़ी धूमधाम के साथ दोनों का विवाह हो जाता है। वासगृह में शय्या सजाई जाती है। कुवलयमाला की सखियाँ उसे छोड़कर जाने लगती हैं। कुवलयमाला उन्हें सम्बोधित करके कहती है
मा मा मुंचसु एत्थं पियसहि एक्कल्लियं वणमइ व्व |
-हे प्रिय सखियों! मुझे वन-मृगी के समान यहाँ अकेली छोड़कर मत जाओ।
सखियाँ उत्तर देती हैंइय एक्कियाओ सुइरं अम्हे वि होजसु । -हे सखि! हमें भी यह एकान्त प्राप्त करने का सौभाग्य मिले। कुवलयमाला-रोमंचकंपियंसिणंजरियंमामुंचह पियसहीओ।
१. गइतल आदि पूर्वी भाषाओं में। २. दिला, घेतला आदि मराठी में।