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कुवलयमाला
४२१ आतुर हो निकल पड़ी है, उस समय कोई राजा वेष-परिवर्तन कर रात में घूम रहा है । नायिका को देखकर वह पूछता है
सुंदरि घोरा राई हत्थे गहियं पि दीसए णेय | . साहसु मज्म फुडं चिय सुयणु तुमं कत्थ चलिया सि॥
-हे सुदरि ! इस घोर रात्रि में जब कि हाथ की वस्तु भी दिखाई नहीं देती, तू कहाँ जा रही है, मुझे साफसाफ बता। नायिका उत्तर देती है
चलिया मि तत्थ सुंदर जत्थ जणो हियय-वल्लहो वसइ । भणसु य जं भणियव्यं अहवा मग्गं ममं देसु ॥
-हे सुंदर ! मैं वहाँ जा रही हूँ जहाँ मेरा प्रियतम रहता है । जो कहना हो कहो, नहीं वो मुझे जाने का मार्ग दो ।
राजा-सुंदरी घोरा चोरा सूरा य भमंति रक्खसा रोद्दा ।
___ एयं मह खुडइ मणे कह ताण तुमं ण बोहेसि ।।
-हे सुंदर ! बड़े भयंकर शूरवीर चोर तथा रौद्र राक्षस रात को पर्यटन करते हैं। मेरे मन में यही हो रहा है कि आखिर तुम्हें भय क्यों नहीं लगता ? नायिका-णयणेसु दंसण-सुहं अंगे हरिसं गुणा य हिययम्मि |
दइयाणुराय-भरिए सुहय ! भयं कत्थ अल्लियउ॥ -मेरे नयनों में दर्शन का सुख, मेरे अंग में हर्ष और प्रियतम के अनुराग से पुलकित मेरे हृदय में गुण विद्यमान हैं, फिर हे सुभग! भय किस बात का ? __इस पर राजा ने कहा, सुन्दरि ! तुम डरो मत, मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा। इतने में उधर से उसका पति आता हुआ दीख पड़ा । उसने अपनी प्रियतमा की रक्षा करने के उपलक्ष में राजा के प्रति कृतज्ञता प्रकट की।
पाटलिपुत्र में धण नाम का एक वणिकपुत्र रहता था। वह धनार्जन करने के लिए यानपात्र से रत्नद्वीप के लिए रवाना हुआ। मार्ग में जहाज़ फट जाने के कारण वह कुडंग नामक द्वीप में