________________
३०८ प्राकृत साहित्य का इतिहास निकालने की विधि का विस्तारपूर्वक वर्णन है। जागरण, बंधन
और छेदन की विधियाँ बताई गई हैं। मृतक के पास बैठकर रात्रिभर जागरण करने तथा उसके हाथ और पैर के अंगूठे को बाँध कर छेदने का विधान है जिससे कोई व्यन्तर उसके शरीर में प्रवेश न कर जाये। फिर अच्छा स्थान देख कर उसे डाभ, अथवा ईंटों के चूर्ण अथवा वृक्ष की केसर से समतल करके, उस पर क्षपक के मृत शरीर को स्थापित कर जंगल से लौट आये ।'
मूलाचार मूलाचार को आचारांग भी कहा जाता है, इसके कर्ता वट्टकेर आचार्य हैं । वसुदेवनन्दि ने इस पर टीका लिखी है । मूलाचार में मुनियों के आचार का प्रतिपादन है । आवश्यकनियुक्ति पिण्डनियुक्ति, भत्तपरिण्णा और मरणसमाही आदि श्वेताम्बर ग्रन्थों से मूलाचार की बहुत सी गाथायें मिलती हैं। इसका रचनाकाल निश्चित नहीं है, फिर भी ग्रन्थ की रचना शैली देखते हुए यह भगवती आराधना जितना ही प्राचीन प्रतीत होता है। इसमें बारह अधिकार हैं जो १२५२ गाथाओं में विभाजित हैं। मूल गुणाधिकार में पाँच महाव्रत, पाँच समिति, पाँच इन्द्रियों का निरोध, छह आवश्यक, लोच, अचेलकत्व, अस्नान, क्षितिशयन, अदन्तधावन, स्थितिभोजन और एकभक्त-इस प्रकार २८ मूलगुणों
१. बृहत्कल्पसूत्र के विष्वाभवनप्रकरण (४.२९) और उसके भाष्य (५४९७-५५६५) में इस विषय का विस्तार से वर्णन है। बृहत्कल्पभाष्य और भगवतीआराधना की इस विषयक गाथायें हूबहू मिलती हैं।
२. माणिकचन्द जैन ग्रन्थमाला बम्बई में विक्रम संवत् १९७७ और १९८० में दो भागों में प्रकाशित हुआ है।
३. पण्डित सुखलाल जी ने पञ्चप्रतिक्रमणसूत्र में मूलाचार की उन गाथाओं की सूची दी है जो आवश्यकनियुक्ति में मिलती हैं।