________________
विविधतीर्थकल्प (झ) तीर्थ-संबंधी विविधतीर्थकल्प विविधतीर्थ अथवा कल्पप्रदीप' जिनप्रभसूरि की दूसरी रचना है। जैसे हीरविजयसूरि ने मुगल सम्राट अकबर बादशाह के दरबार में सम्मान प्राप्त किया था,वैसे ही जिनप्रभसूरि ने तुगलक मुहम्मदशाह के दरबार में आदर पाया था। जिनप्रभसूरि ने गुजरात, राजपूताना, मालवा, मध्यप्रदेश, बराड, दक्षिण, कर्णाटक, तेलंग, बिहार, कोशल, अवध, उत्तरप्रदेश और पंजाब आदि के तीर्थस्थानों की यात्रा की थी। इसी यात्रा के फलस्वरूप विविधतीर्थकल्प नामक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक ग्रंथ की रचना की गई है। यह ग्रंथ विक्रम संवत् १३८६ (ईसवी सन् १३३२) में समाप्त हुआ। इसमें गद्य और पद्यमय संस्कृत और प्राकृत भाषा में विविध कल्पों की रचना हुई है, जिनमें लगभग ३७-३८ तीर्थों का परिचय दिया है। इसमें कुल मिलाकर ६२ कल्प हैं। रैवतकगिरिकल्प में राजमतीगुहा, छत्रशिला, घंटशिला और कोटिशिला नाम की तीन शिलाओं का उल्लेख है । अणहिल्लवाडय नगर के वस्तुपाल और तेजपाल नाम के मंत्रियों का नामोल्लेख है जिन्होंने आबू के सुप्रसिद्ध जिनमंदिरों का निर्माण कराया। पार्श्वनाथकल्प में पावा, चंपा, अष्टापद, रेवत, संमेद, काशी, नासिक, मिहिला और राजगृह आदि प्रमुख तीर्थों का उल्लेख किया गया है। अहिच्छत्रानगरीकल्प में जयंती, नागदमणी, सहदेवी, अपराजिता, लक्षणा आदि अनेक महा औषधियों के नाम गिनाये हैं। मथुरापुरीकल्प में अनेक तोरण, ध्वजा,
और मालाओं से सुशोभित स्तूप का उल्लेख है। इस स्तूप को कोई स्वयंभूदेव का और कोई नारायण का स्तूप कहता था, बौद्ध इसे बुद्धांड मानते थे। लेकिन यह स्तूप जैन स्तूप बताया गया है । मथुरा के मंगलचैत्य का प्ररूपण बृहकल्पसूत्र-भाष्य में
१. मुनि जिनविजय जी द्वारा संपादित,' सिंघी जैन ज्ञानपीठ में १९३४ में प्रकाशित ।
२३ प्रा० सा०