________________
श्रावकाचार
३३९
(ङ) श्रावकाचार मुनियों के आचार की भाँति श्रावकों के आचार-विषयक भी अनेक ग्रंथों की रचना प्राकृत में हुई। इनमें मूल आवश्यकसूत्र पर लिखे हुए व्याख्या-प्रन्थों का स्थान बहुत महत्व का है।
सावयपण्णत्ति ( श्रावकप्रज्ञप्ति) यह रचना उमास्वाति की कही जाती है। कोई इसे हरिभद्रकृत मानते हैं। इसमें ४०१ गाथाओं में श्रावकधर्म का विवेचन है।
__सावयधम्मविहि (श्रावकधर्मविधि ) यह रचना हरिभद्रसूरि की है। मानदेवसूरि ने इस पर विवृति लिखी है। १२० गाथाओं में सम्यक्त्व और मिथ्यात्व का वर्णन करते हुए यहाँ श्रावकों की विधि का प्रतिपादन किया है।
सम्यक्त्वसप्तति यह भी हरिभद्रसूरि की कृति है। संघतिलकाचार्य ने इस पर वृत्ति लिखी है। इसमें १२ अधिकारों द्वारा ७० गाथाओं में सम्यक्त्व का स्वरूप बताया है। अष्ट प्रभावकों में वज्रस्वामी, मल्लवादि, भद्रबाहु, विष्णुकुमार, आर्यखपुट, पादलिप्त, और सिद्धसेन का चरित प्रतिपादित किया है।
जीवानुशासन इसके कर्ता वीरचन्द्रसूरि के शिष्य देवसूरि हैं जिन्होंने विक्रम संवत् ११६२ ( ईसवी सन ११०५) में इस ग्रन्थ की रचना
१. ज्ञानप्रसारकमंडल द्वारा वि० सं० १९६१ में बम्बई से प्रकाशित ।
२. आत्मानन्द जैनसभा, भावनगर द्वारा सन् १९२४ में प्रकाशित ।
३. देवचन्दलाल भाई जैन पुस्तकोद्धार ग्रंथमाला की ओर से सन् १९१६ में प्रकाशित।