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अन्य प्रकरण-ग्रन्थ
३४९ का विचारपंचाशिका, महेन्द्रसूरि का विचारसत्तरि, देवेन्द्रसूरि का सिद्धपंचाशिका, अभयदेव का पंचनिग्रंथीप्रकरण, धर्मघोष का बंधषट्त्रिंशिकाप्रकरण, रत्नशेखर का गुणस्थानक्रमारोहप्रकरण, शान्तिसूरि का धर्मरत्नप्रकरण,' लोकनालिकाप्रकरण, देहस्थितिप्रकरण, श्रावकव्रतभंगप्रकरण, प्रज्ञापनातृतीयपदसंग्रहणीप्रकरण, अन्नायउंछप्रकरण, निगोदषट्त्रिंशिकाप्रकरण, परमाणुविचारषट्त्रिंशिकाप्रकरण, पुद्गलषत्रिंशिकाप्रकरण, सिद्धदंडिकाप्रकरण (देवेन्द्रसूरिकृत), सम्यक्त्वपंचविंशतिकाप्रकरण, कर्मसंवेद्यभंगप्रकरण, क्षुल्लकभवावलि प्रकरण (धर्मशेखरगणिकृत), मंडलप्रकरण (विनयकुशलकृत), गांगेयप्रकरण अंगुलसप्ततिकाप्रकरण, वनस्पतिसत्तरिप्रकरण (मुनिचन्द्रकृत), देवेन्द्रनरकेन्द्रप्रकरण' (हरिभद्रकृत), कूपदृष्टांतविशदीकरणप्रकरण' (यशोविजयकृत), पुद्गलभंगप्रकरण, पुद्गलपरावर्तस्वरूपप्रकरण, षट्स्थानकप्रकरण, भूयस्कारादिविचारप्रकरण, बंधहेतूदयत्रिभंगीप्रकरण (हर्षकुलकृत), बंधोदयप्रकरण, कालचक्रविचारप्रकरण, जीवाभिगमसंग्रहणीप्रकरण, गुरुगुणषट्त्रिंशिकाप्रकरण (बजसेनकृत), त्रिषष्टिशलाकापंचाशिकाप्रकरण, कालसत्तरिप्रकरण (धर्मघोषकृत), सूक्ष्मार्थसत्तरिप्रकरण ( चक्रेश्वरसूरिकृत), योनिस्तवप्रकरण, लब्धिस्तवप्रकरण, लोकांतिकस्तव प्रकरण, आदि मुख्य हैं । कर्मग्रन्थों का भी प्रकरणों में अन्तर्भाव होता है।
१. जैनग्रंथ प्रकाशक सभा द्वारा अहमदाबाद से वि० सं० २०१० में प्रकाशित ।
२. इस पर मुनिचन्द्रसूरि की वृत्ति है। जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर की ओर से सन् १९२२ में प्रकाशित ।
३. जैन ग्रन्थ प्रकाशक सभा, राजनगर ( अहमदाबाद) की ओर से वि० सं० १९९७ में प्रकाशित । ___४. देखिये जैन ग्रंथावलि, श्री जैन श्वेताम्बर कन्फ्रेस, मुंबई, वि० सं० १९६५, पृ० १३२-४५।